यह बात थोड़ी अजीब नहीं है कि क्या चुनाव चाहे पश्चिम बंगाल में हो, उत्तर प्रदेश में हो गोवा में हो, उत्तरखंड में हो या कहीं और किसी विधानसभा के हों, भारतीय जनता पार्टी को नरेंद्र मोदी का है मोर्चो पर खड़ा करना होता है. चुनावी भाषण मोदी को देने खूब आते थे पर धीरेधीरे उन का नयापन खत्म हो रहा है और किराए की भीड़ भी सुनने को कोई खास बेचैन नहीं होती पर फिर भी पार्टी को उन्हीं को बुलाना पड़ता है.
जो पार्टी नेताओं से भरी हो, जिस के मेंबर गलीगली में हो, जो हर दंगे में हजारों की भीड़ जमा कर देती हो, उसे विधानसभाओं के छोटे चुनावों में भी प्रधानमंत्री की एक बार नहीं दसियों बार बुलाना पड़े, यह तो बहुत परेशानी की बात है. प्रधानमंत्री का काम चुनाव लडऩा नहीं होता देश चलाना होता है. ऐसे समय जब देश में महंगाई का नारा बढ़ रहा है. बेरोजगारी का कोई उपाय नहीं दिख रहा है, टैक्स बढ़ रहे हों, हिंदूमुसलिम दंगूे भडक़ रहे हों, पढ़ाई बिखर रही हो, किसान रोना रो रहे हो, विदेशों में देश की इज्जत को खतरा प्रधानमंत्री छोटेछोटे कस्बों शहरों में जा कर भाषण देकर कांग्रेस या दूसरी पाॢटयों को कोसने का काम करें, यह शर्म की बात है.
गलती नरेंद्र मोदी की नहीं है. गलती तो पूरी पार्टी की है कि उस का कोई मुख्यमंत्री ऐसा नहीं है जो अपने बलबूते पर चुनाव जीत कर आ सके. ममता बैनर्जी ने पश्चिमी बंगाल का चुनाव अपने बलबूते पर जीता. तमिलनाडू का चुनाव स्टालिन ने अपने बलबूते पर जीता था. कांग्रेस सरकारों में भी पहले अशोक गहलोट में राजस्थान का चुनाव अपने बलबूते पर जीता था और पंजाब का चुनाव कैप्टन अमङ्क्षरद्र ङ्क्षसह जो अब भाजपा से मिल रहे हैं, चुनाव अपने बलबूते पर जीता. इन के साथ दूसरी पाॢटयां या कांग्रेस पार्टी थी पर इन्हें किसी प्रधानमंत्री की तो जरूरत नहींं पड़ी.