सरकार को उन कैदियों को छोड़ देने का फैसला जिन की उम्र ज्यादा हो, जिन्होंने सजा के आधे दिन गुजार दिए हों और जो बीमार हों, अच्छा है. कैद समाज को ज्यादा साफसुथरा रखती है, यह गलतफहमी है. पकड़े जाने पर और जेल में कैद काटने से कोई सुधरता है या नहीं, समाज में अपराध तो कम बिलकुल नहीं होते.

अमेरिका आजकल बदनाम हो गया है कि उस ने बहुत ज्यादा लोगों को जेलों में भर रखा है. वहां जेलों का निजीकरण हो गया है और प्राइवेट ठेकेदार हल्ला मचवाते रहते हैं कि यदि अपराधी जल्दी छोड़ दिए गए तो वे समाज को तहसनहस कर देंगे. फिर भी वहां समाज में अपराध कम नहीं हो रहे.

हमारे देश में जेलों में आमतौर पर वही बंद हैं जो अदालतों में महंगे वकील नहीं कर पाए. कुछ मोटे मामलों को छोड़ कर महंगे वकीलों के सहारे आरोपी आमतौर पर बच ही निकलते हैं. यदि वे लोग जो अपराध के शिकार हुए हों चुप बैठ जाएं तो हमारे यहां सजा मिलना कम ही होता है इसलिए जेलें या तो ऐसे लोगों से भरी हैं जो पुलिस से भिड़ गए होते हैं या जो गरीब होते हैं पर कोई जुर्म कर बैठे हों. उन्हें छोड़ने का फैसला ठीक है क्योंकि अब उन्हें पता चलेगा कि जेल से बाहर की जिंदगी भी आसान नहीं.

जेल काट कर आए लोगों को न घर वालों का प्यार मिलेगा, न दोस्तों का. आजकल जिस तरह की बेरोजगारी है, उन्हें रोजगार मिलेगा इस के भी मौके कम हैं. उन्हें हकीकत का पता अब चलेगा. जेल से बाहर रह कर भी वे अपनी खुद की बनाई कैद में रहेंगे.

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