राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष पद दे दिया गया है और सोनिया गांधी ने रिटायरमैंट सी ले ली है. कांग्रेस काफी समय से असमंजस में थी. 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद जब तक नेहरू परिवार की सोनिया गांधी मैदान में न कूदी थीं, कांग्रेस  बिना इंजन के जहाज की तरह राजनीतिक लहरों पर तैर रही थी. 1998 में सोनिया गांधी के आने से उसे नई जान मिली थी.

2014 में भारतीय जनता पार्टी की जीत के पीछे सोनिया गांधी का बीमार होना और राहुल गांधी का उदासीन रहना रहा है. कांग्रेस इन के स्थान पर किसी नेता को उभार नहीं पाई. 2017 के आखिर में आखिरकार राहुल गांधी ने कांग्रेस को संभालने का जिम्मा ले ही लिया. राहुल के अध्यक्ष पद संभालने पर कांग्रेसियों ने उत्साह दिखाया तो इसीलिए कि उन्हें एक नेता तो मिला. कांग्रेस में राहुल गांधी के अलावा जो नेता हैं, वे वक्ता ज्यादा हैं, मेहनती कम. उन में से ही मणिशंकर अय्यर हैं जिन्होंने अपनी जबान से फिसले 4 शब्दों के चलते कांग्रेस को 2 बार बेहद नुकसान पहुंचाया.

कांग्रेस वंशवाद की शिकार है, यह अफसोस की बात है पर यही सवाल देश की अन्य पार्टियों से किया जा सकता है. देश में इक्कादुक्का पार्टी ही सफल हैं

जो वंशवाद की शिकार नहीं हैं. भाजपा चाहे हजार बार कह ले कि वह वंशवाद को नहीं मानती पर असल में उस के अधिकांश छोटे नेता दूसरीतीसरी पीढ़ी के पारिवारिक व पेशेवर नेता ही हैं. जब तक नरेंद्र मोदी जैसे कर्मठ नेता नहीं उभरे, भाजपा दूसरे दरजे की पार्टी ही रही, कम्युनिस्ट पार्टियों की तरह.

राहुल गांधी ने गुजरात को जिस तरह हिला कर रखा उस से कांग्रेसियों में उन पर व अपने पर भरोसा बढ़ा है और वे हर जगह जम कर अब अपनी पहचान बनाएंगे. कांग्रेस को समाप्त मानने वालों के लिए यह चाहे अशुभ हो पर कांग्रेसियों के लिए राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना एक मरती पार्टी में नई जान फूंकेगा, यह पक्का है.

राहुल गांधी ने गुजरात के चुनावों के दौरान बड़े उद्योगपतियों पर जम कर प्रहार किया है और छोटे व्यापारियों, किसानों, मजदूरों का पक्ष लिया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि विपक्षी नेता के रूप में वे क्रोनी कैपिटलिज्म के खिलाफ खड़े रहेंगे.

अंधविश्वासों, पूजापाठ और धर्म की राजनीति से राहुल गांधी मुक्ति दिला पाएंगे, इस की उम्मीद तो कम है पर वे धर्म की आग में देश को पकाएंगे, यह डर तो नहीं है.

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