अपना घर चाहे सिर्फ 500 फुट का हो, हर साल, साल दर साल सपना बनता जा रहा है. देशभर में बनते मकानों को देख कर गृहिणियां सोचती हैं कि किसी दिन उन का भी अपना एक मकान होगा पर लगता है कि यह सपना उसी तरह का वादा है जैसे पंडितजी कहते हैं कि 21 बृहस्पतिबार को व्रत रखो, अच्छा पति अपनेआप मिल जाएगा.

जिद्दी सरकार, लालची बैंक, अस्थिर बाजार, बेईमान बिल्डर, ढुलमुल ग्राहक और अदालतों में देरी के कारण जो नुकसान हो रहा है वह औरतों के सपनों का है. जिन्होंने येन केन प्रकारेण मकान हथिया लिए वे तो खुश हैं पर बाकी मनमसोस रहे हैं. लाखों लोगों ने तो अपनी जमापूंजी भी लगा रखी है और महीनों बैंक को कर्ज व मूल भी देते हैं पर उन्हें मकान नहीं मिला है. देश के 11,000 बिल्डरों पर किए गए एक सर्वे से पता चला है कि 7,77,183 करोड़ रुपए के अधूरे मकान पड़े हैं जो कहीं पैसे की वजह से, कहीं बिल्डरों का दिवाला निकलने के, तो कहीं सरकारी नियमों के कारण पूरे बन कर बिक नहीं सके हैं.

इन बिल्डरों ने बैंकों के 4 लाख करोड़ रुपए देने हैं और इतने ही ग्राहकों के भी दबा कर बैठे हैं. दिल्ली के पास आम्रपाली गु्रप के हजारों मकान सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डरों से ले कर नैशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कौरपोरेशन को दे दिए हैं पर इस सरकारी कंपनी का अपना रिकौर्ड खराब है. इस में भयंकर नुकसान और भ्रष्टाचार होता है. इस के ग्राहकों को अपना पैसा या मकान मिलेगा, यह भूल जाएं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...