राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने एक इंटरव्यू में आरक्षण के बारे में जो कहा है उस पर चौंकने की जरूरत नहीं है. संघ और भारतीय जनता पार्टी की ही नहीं, लगभग समस्त सवर्णों की यह राय है चाहे वे कम्युनिस्ट पार्टी में हों या बहुजन समाज पार्टी में. आरक्षण को देश का सामाजिक तौर पर संपन्न वर्ग अपने पुश्तैनी अधिकारों पर गहरा प्रहार मानता है. वह यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि जिन्होंने निचले, पिछड़ी, दलित, आदिवासियों में जन्म लिया है वे ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्यों के समकक्ष हो सकते हैं. वास्तविकता तो यह है कि कई हजार साल की मानसिक गुलामी ने इस जन्मजात भेदभाव के पीडि़तों की खुद की सोच भी इस तरह कुंद कर दी है कि वे इसे ईश्वर की देन मान कर खुश हैं और आपसी स्तर पर भेदभाव को इसी का सुखद परिणाम मान कर संतुष्ट हैं. आरक्षण का सवाल तो बहुत थोड़े से वंचित वर्ग उठाते हैं जिन्हें उम्मीद होती है कि इस से उन्हें कुछ मिल जाएगा. मोहन भागवत ने अगर कुछ कहा तो गलत नहीं क्योंकि वे सवर्णों व गैरसवर्णों दोनों की ही भावनाओं को दर्शा रहे थे.

जब तक समाज उन ग्रंथों, उन रिवाजों, उन त्योहारों, उन देवीदेवताओं को मानता रहेगा जिन में इस भेदभाव को बारबार घटनाओं, कहानियों, भगवान के आदेशों से कहलवाया गया है, जन्मजात भेदभाव बना रहेगा और विवाद खड़ा रहेगा. ऊंची जातियां जन्म को मेरिट का नाम देती रही हैं और देती रहेंगी. आरक्षण के कारण कुछ लाख दबेकुचलों को जगह मिल जाए तो भी देश का समाज नहीं बदलेगा और गलीगली में यह ऊंचनीच चालू रहेगी. अब तो इस वर्णव्यवस्था की दीवार को और मजबूत करने के लिए पिछड़ों के ही नहीं, अछूत दलितों के भी अलग मंदिर बनवा दिए गए हैं ताकि वे मंदिरविहीन होने का दुख न भोगें. इन पिछड़ोंनिचलों के मंदिरों से होने वाली भारी आय भी ऊंची जातियों के लोग ले जा रहे हैं और भारी संख्या में व्यापारी वर्ग के लोगों ने गैर सवर्णों के मंदिरों के ट्रस्टों पर कब्जा कर लिया है. जब पिछड़ों व दलितों ने स्वयं सामाजिक क्षेत्र में भेदभाव को मजबूत कर लिया है तो मोहन भागवत ने नौकरियों में, शिक्षा संस्थानों में इस पर बहस की गुंजाइश का सवाल उठा कर गलत क्या किया है? इस के लिए तो पिछड़ों व दलितों के नेता ही हैं जो हर थोड़े दिनों में किसी नए मंदिर में से तिलक लगाए, प्रसाद की थाली लिए निकलते हैं. वे लाउडस्पीकरों पर घोषणा कर रहे हैं कि उन की धार्मिक दुकान कमजोर नहीं है. ऐसे में वे किस मुंह से आरक्षण की मांग कर सकते हैं?

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