विपक्षी दलों के दबाव और राज्यों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद के मुताबिक न मिलने वाले समर्थन से नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली अब नोटबंदी पर कुछ सफाई देने को मजबूर हुए हैं. हालांकि यह सफाई कितनी सच्ची है, इस का पता नहीं है. सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगी जानकारी से आम जनता को अब तक कोई विशेष दस्तावेज नहीं मिले हैं कि यह नोटबंदी लाभदायक होगी या नहीं, या अनिवार्य है या नहीं, इस पर चर्चा हुई थी या रिपोर्टें बनी थीं या नहीं. पर प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने संसद में व बाहर कुछकुछ कहा है. अब यह पक्का है कि नोटबंदी का फैसला मनमाना था और इस के लिए कोई लंबीचौड़ी तैयारी नहीं थी.

इस देश में तरहतरह के निरर्थक विश्वास हर व्यक्ति के मन में बचपन से भर दिए जाते हैं कि पीपल के पेड़ के नीचे भूत होता है, फलां मंदिर में तहखाना है जिस में अरबों का खजाना है, नरबलि देने पर लक्ष्मी प्रकट हो जाती है आदि. इस तरह की अतार्किक बातों पर विश्वास करने के चलते ही हर दुकान में मंदिर बने हुए हैं और हर गाड़ी में नीबूमिर्चें लगी हैं कि विद्वान कह रहे हैं तो ऐसा ही होगा. नोटबंदी के बारे में भी यही समझा गया कि लोगों ने कमरों में नोट भर कर रखे हुए हैं और नोट बदल दिए जाएं तो कई लाख करोड़ रुपए अपनेआप ऐसे निकल आएंगे जैसे आग लगने पर चूहे बिलों से भागते हैं. नोटबंदीरूपी आग लगने से चूहे तो दिखे नहीं, पर अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा स्वाहा हो गया और जनता को अब अपना घर संभालने में कई महीने लगेंगे.

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