भारतीय क्रिकेट लास वेगास के जुएखाने की तरह है और अदालतें व मीडिया जितना इस की तह में खोज रहे हैं उतना पता चलता है कि सब एक से बढ़ कर एक हैं. न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल ने अपनी इंडियन प्रीमियर लीग पर सौंपी अपनी रिपोर्ट में 13 नामों का जिक्र किया है. इन में बोर्ड औफ क्रिकेट कंट्रोल औफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन का नाम भी है. यह रिपोर्ट अभी गुप्त है. सुप्रीम कोर्ट ने इतना कहा है कि श्रीनिवासन समेत अन्य 12 पर गंभीर आरोप हैं पर चूंकि जांच अभी बाकी है इसलिए वह रिपोर्ट को प्रकाशित नहीं कर रहा क्योंकि इस में बड़े नाम हैं.
क्रिकेट राजनीति और नौकरशाही की तरह इस देश की संस्कृति की पोल खोलता है. राजनीति देशसेवा की जगह स्वयंसेवा और नौकरशाही अपने दायित्व से भटक कर मालिकशाही बन गई है. दोनों ने जनता को जम कर लूटा है. और यह लूट जारी रहेगी, भ्रष्टाचारमुक्त देश का चाहे जितना नारा दिया जाए क्योंकि बेईमानी इस देश की संस्कृति का हिस्सा है. हमारे पौराणिक इतिहास की देन देवीदेवता हमारे आज के नेताओं, अफसरों और अब खिलाडि़यों की तरह की सफेद चमक के पीछे काले घृणित काम करते रहे हैं.
जैसे हम देवीदेवताओं को उन के गंभीर दोषों के बावजूद पूजते रहते हैं वैसे ही खिलाडि़यों को पूज रहे हैं, जैसे देवीदेवताओं और नेताओं को नोटों के हार पहनाते हैं, खिलाडि़यों की बनाई चीजें खरीद कर उन्हें अरबखरबपति बना रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने 12 नाम इसीलिए जाहिर नहीं किए कि कहीं पूजनीय ‘देवताओं’ की पोल खुलने पर जनता भड़क न उठे.
सट्टेबाजों ने क्रिकेट को खेल से तमाशा और फिर तमाशे से जुआ बनाया. उन्होंने हर मैच, बौल, छक्के, चौके पर बोली लगा कर उसे कैसीनो बना दिया. हर बौल पर लाखों नहीं, करोड़ों की बोली लग सकती है क्योंकि बौलर और बैट्समैन को हिस्सा दे कर उस से अपने अनुसार कराया जा सकता है. यह फिक्सिंग ऐसी है जो सस्ते कैसीनो को भी मात देती प्रतीत होती है. स्टेडियमों को लास वेगास के कैसीनो बनाने में खिलाडि़यों, प्रबंधकों और सट्टेबाजों ने कोई कसर नहीं छोड़ी. आज शिकायत खिलाडि़यों या क्रिकेट प्रेमियों से कम, सरकार से ज्यादा है जो पुरस्कार देदे कर क्रिकेट की महिमा बढ़ाने में लगी रहती है.
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