अमेरिका में चर्च का दबाव उसी तरह बढ़ रहा है जैसे भारत में भगवा गैंग का बढ़ रहा है. चर्च का बिजनैस तभी चलता है जब चर्च किसी न किसी मामले को ले कर अपने शिष्यों को लगातार भड़काऊ हालत में रख सकें. औरतों के गर्भपात के हक पर चर्च ने खूब हल्ला मचाया है और अपने शिष्यों को कुछ भी करने की छूट दे कर अपना धंधा बढ़ाया है. नतीजा यह है कि 1973 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने जिस गर्भपात के अधिकार को संवैधानिक माना था, चर्च जाने वाले कट्टरपंथी सुप्रीम कोर्ट के जजों ने जून 2022 में उस फैसले को उलट दिया

और गर्भपात का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रह गया.

राज्यों को अधिकार है कि वे चाहें तो गर्भपात को अवैध कर दें. गर्भपात पर बहस चर्च में शुरू होती है जहां धार्मिक कट्टर हर सप्ताह संडे को जमा होते हैं और बाइबिल के चुने हुए अंशों को ईश्वरवाणी मान कर प्रवचन देते पादरी के आगे नतमस्तक हो कर हां में हां मिलाते हैं. राज्यों के अधिकांश राजनीतिबाज भारत की तरह चर्च में मत्था टेके बिना जीत नहीं सकते क्योंकि धर्म के धंधे की खासीयत यह है कि इस में इकट्ठा होने की एक जगह बनवा दी जाती है और बचपन से ही धर्म का पाठ घोटघोट कर पढ़ा दिया जाता है.

चर्च की बातों में आए पोलिटीशियनों की यह हिम्मत नहीं होती कि वे काल्पनिक, अतार्किक व भ्रमित बातों, जो धर्मग्रंथों में लिखी हैं, का विरोध कर सकें. बाइबिल में सैकड़ों कहानियां ऐसी हैं जिन्हें किसी भी युग में सत्य नहीं माना जा सकता था, फिर भी उन्हें सुनने वाले मस्त हो जाते थे और उन का इस्तेमाल घर की औरतों, बच्चों, पड़ोसियों व दोस्तों के साथसाथ दुश्मनों पर भी करते रहे हैं.

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