देश में भ्रष्टाचार की हालत ऐसी हो चुकी है कि अफसर अब भ्रष्टाचार रोकने वाले विभागों में नियुक्ति नहीं चाहते. केंद्र सरकार ने उन अफसरों को काली सूची में डालना शुरू किया है जिन्होंने विभिन्न विभागों में चीफ विजिलैंस औफिसर का पद संभालने से इनकार कर दिया. एक समाचार के अनुसार सतीश कुमार कौशिक, अनुराधा शंकर और सरदार सिंह मीना को सरकारी विभागों व निकायों में नियुक्त किया गया था पर उन्होंने पद नहीं संभाले. अब न उन्हें केंद्र सरकार में पद दिया जाएगा न विदेश में.

समाचार में पद को न संभालने के कारण नहीं बताए गए पर इन्हें समझना कठिन नहीं है. वैसे, यह पद शक्तिशाली है और अफसर किसी की भी नकेल कस सकता है लेकिन प्रशासनिक सेवाओं का स्टील फ्रेम जानता है कि इस स्टील का हर पेंच जंग खाया हुआ है और किसी से भी दुश्मनी मोल लेना जन्मभर के लिए खुद को जख्मी कर लेना है. चीफ विजिलैंस औफिसर जिस के खिलाफ भी जांच करेगा वह अपने बहुत से हितरक्षकों को सामने ले आएगा. अगर जांच में किसी को दंडित कर दिया गया तो उसे काली भेड़ ही नहीं, काला सूअर मान लिया जाएगा और जब वह पद छोड़ेगा तो उसे कहीं पोस्ंिटग नहीं मिलेगी, कोई संरक्षक नहीं मिलेगा, कोई दोस्त उस का साथ न देगा.

इस पद पर आने वाला हर अफसर जानता है कि उस ने पिछली पोस्ंिटगों पर खुद क्याक्या किया है और बदले की कार्यवाही की गई तो उस की पिछली करतूतों की फेहरिस्त बनाई जा सकती है. इस देश में दंडित करने के लिए आरोप लगाना काफी है, साबित करना नहीं. हजारों कागजों और बीसियों गवाहों के बाद छूट भी गए तो क्या, जिंदगी तो बरबाद हो ही जाएगी.नरेंद्र मोदी अगर यह दावा करें कि वे भ्रष्टाचार को खत्म कर देंगे तो यह चुनावी सभाओं तक ही ठीक है. प्रशासन में भ्रष्टाचार की जगह पर सीमेंट लगाना न संभव है न इस के लिए मोदी का कोई साथ देगा. जब कोई विजिलैंस औफिसर ही बनने को तैयार न हो तो फिर देश का आप क्या कर सकते हैं?

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