दिल्ली के नगर निगमों के सफाई कर्मचारियों की हड़ताल ने पहले से ही प्रदूषण से भरी दिल्ली को अब कूडे़ और बदबू से भर दिया. ऐसा नहीं कि हड़ताल से पहले दिल्ली साफ थी. देश की महान सभ्यता के हिसाब के अनुसार दिल्ली का चप्पाचप्पा, हर बस्ती, यहां तक कि हर रिहायशी सोसायटी पहले ही गंदी, बेतरतीब, बदबूदार और बजबजाती नालियों वाली थी, हड़ताल से हालत और खराब हो गई.
दिल्ली की सफाई का जिम्मा 3 नगर निगमों का है और तीनों पर लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है. स्वच्छ भारत का नारा लगाने वाली भाजपा देश को क्या साफ करेगी जब दिल्ली को ही कभी आदर्श शहर न बना पाई. मंत्रों और हवनों से शहर साफ नहीं होते, ऊपर से सफाई कर्मचारियों की हड़ताल.
सफाई का काम ऐसा है जिस के कर्मचारियों की हड़ताल कभी बर्दाश्त नहीं की जा सकती, हालांकि दुनिया के कितने ही शहरों में सफाई कर्मचारी अपनी धौंस जमाने के लिए हड़ताल के जरिए शहरी प्रशासन को डराते रहते हैं. शहरी कितने ही सफाईपसंद क्यों न हों, अगर हड़ताल हो जाए तो वे अपने कचरे का क्या करें, यह वे नहीं जानते. दिल्ली में तो हर रोज, हड़ताल हो या न हो, घर का कचरा महल्ले के कोने में फेंक कर विजयप्राप्ति का अनुभव किया जाता है. कोने से कचरा उठाने वाला नहीं आया, तो पक्का है शहर भभकेगा.
इस मामले में आग तब लग गई जब नगर निगम दिल्ली सरकार से पैसे की मांग करने लगे. दिल्ली में सरकार आम आदमी पार्टी की है, जिस से भाजपाई कुढ़ रहे हैं क्योंकि उस ने पिछले विधानसभा चुनाव में 67-03 से हरा कर नरेंद्र मोदी के चांद पर गहरा घाव दिया था. अरविंद केजरीवाल ने पैसे की मांग को यह कह कर ठुकरा दिया कि नगर निगमों का पैसा रिश्वतों में चला जाता है जबकि उन की आय कम नहीं है और राज्य सरकार को संवैधानिक रूप से स्वतंत्र नगर निकायों को संभालने का कोई दायित्व नहीं है.
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