चंडीगढ़ में विकास बराला और उस के दोस्त आशीष ने सिद्ध कर दिया कि एक गाड़ी में भी एक युवती बहुत सेफ नहीं है. शोहदे यदि चाहें तो वे तेज गाड़ी में जाती लड़की को भी अगवा कर सकते हैं. इस बहुचर्चित मामले में केवल 2 लड़कों में ही इतनी हिम्मत थी कि गाड़ी में चलती लड़की को पकड़ने की कोशिश कर सकें.
ठीक है विकास बराला के सिर पर सत्ता का बड़ा भूत सवार था कि उस का बाप सरकार चलाता है. अगर वह भारतीय जनता पार्टी की हरियाणा प्रदेश इकाई के अध्यक्ष का बेटा न होता, तो भी ऐसा कर लेता, इस में थोड़ा संदेह है. हां, अगर सताई लड़की आईएएस अधिकारी की बेटी न होती तो मामला उछलता ही नहीं.
देश में लड़कियों को जो आजादी मिली है वह अभी भी सतही है और इस पर भी हजार पाबंदियां हैं. लड़कियों को आज भी कोरे मनोरंजन की चीज समझा जा रहा है क्योंकि देश के अधिकांश घरों में मांओं, दादियों, बूआओं, मौसियों और बहनों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को हर कोई देखता है. जब घरघर में दहेज हत्या की चर्चा हो रही हो तो स्वाभाविक है कि यह हरेक के मन में बैठ जाएगा कि औरत जात के साथ जैसा मरजी व्यवहार किया जा सकता है.
लड़कियों के पैदा होते ही यह पाठ पढ़ा दिया जाता है कि वे कमजोर हैं लेकिन इस से ज्यादा लड़कों को यह पढ़ाया जाता है कि वे ज्यादा मजबूत हैं और मनमानी कर सकते हैं. ऐसा हर स्तर पर होता है. निर्भया कांड में सब से दुर्दांत नाबालिग लड़का किसी नेता का बेटा नहीं था, एक बेहद गरीब का, सड़कों का मारा लड़का था. उस ने बड़े ही वहशीपन से लड़की के साथ बरताव किया था.