जिन लोगों ने सामूहिक रूप से हल्ला मचाते हुए नरेंद्र मोदी को विकास का देवदूत बना कर लोकसभा चुनाव जिताया था और उम्मीदें की थीं कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनते ही अमीरों व समर्थों के भाग्य के दरवाजे खुल जाएंगे, उन्हें वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद में पेश किए गए आम बजट से फिर निराशा हुई होगी क्योंकि बजट में व्यापारियों, उद्योगपतियों, शेयर बाजार के कर्ताधर्ताओं, मकानमालिकों, भवन निर्माताओं आदि के लिए कुछ नहीं है. उन्हें न कर में छूट दी गई है न उन के लिए नए कानूनों की प्रस्तावना है. छिटपुट ऊंचनीच है जो बेमतलब की, शायद धार्मिक सी रस्म निभाने की कोशिश है.
सरकार का बजट आजकल देश के लिए बहुत ज्यादा महत्त्व का होता है क्योंकि आम जनता के हाथ क्या बचेगा, क्या उस से छीना जाएगा, उसी से तय होता है. बजट में उम्मीद थी कि उदासीन हालात में चमक डालने के लिए कुछ किया जाएगा और उद्योगों व व्यापारों को बढ़ाने की कोशिशें होंगी पर ऐसा नजर नहीं आया.
सरकार अपना राजस्व खोए बिना भी बहुतकुछ ऐसा कर सकती है जिस से जनता को लाभ हो सके. आज जनता कर देने से उतना नहीं घबराती जितना कर को वसूलने वाली प्रक्रिया के कारण भयभीत रहती है. ठीक है केंद्र सरकार जनरल सेल्स ऐंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी लाना चाहती है पर संसद के गतिरोध के कारण ऐसा हो नहीं पा रहा लेकिन फिर भी बजट में सैकड़ों छोटेछोटे प्रावधान लाए जा सकते थे जिन से जीवन सरल बनाया जा सके. ऐसा हुआ कुछ नहीं.
सरकार ने न फालतू के कर, उपकर कम किए न उत्पादन, सेवा कर कम किए, न नियम सुधारे और न ही सपने दिखाए. यह कहना कि 5 साल में बैठेबिठाए किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी, यह केवल राजनीतिक जुमला है. 5 सालों के दौरान महंगाई कितनी बढ़ेगी, क्या इस का भी अंदाजा है? देश में जो तरक्की दिख रही है वह असल में उस तकनीक के कारण है जो हम ने न बनाई है न उस में कुछ जोड़ा है. हम से गाडि़यां और मोबाइल तक नहीं बनते. हमारे उद्योग विदेशी इशारों पर चलते हैं, विदेशी मशीनों पर फलतेफूलते हैं. खेती की आमदनी में थोड़ा बदलाव आया है पर उस के लिए राज्य सरकारें श्रेय लेंगी, केंद्र सरकार नहीं.
यह न भूलें कि भारत में ही दुनिया के सब से अधिक गरीब हैं. प्रसव के वक्त भारत में ही सब से ज्यादा औरतें मरती हैं. भारत में ही सब से ज्यादा अनपढ़ हैं. भारत में ही बीमारों की संख्या सब से ज्यादा है. हम 7 प्रतिशत की प्रगति पर फूल नहीं सकते. भारत की जनसंख्या दुनिया में सब से ज्यादा बढ़ रही है और पिछले 15-20 सालों में देश में जो चमक बढ़ी थी, अब बढ़नी बंद हो चुकी है. मानवीय अधिकारों की हत्या के इस नए दौर में केंद्र सरकार का आम बजट किसी भी वर्ग को संतुष्ट न करेगा. यह निराशाजनक है. यह बजट हमेशा की तरह केवल सरकार द्वारा, सरकार के लिए है.