फ्रांस में निहत्थे, निर्दोष, युवा, बुजुर्ग, बच्चे एक बार फिर गोलियों के निशाना बने जो धर्म की बंदूकों से निकली थीं और शुक्रवार की एक रंगीन शाम खूनी रात में बदल गई. धर्म के नशे में चूर इसलामिक स्टेट के आत्मघाती दस्ते के 8 या 9 आतंकियों ने पेरिस के 6 ठिकानों पर धुआंधार गोलियां बरसा कर व बम विस्फोट कर 150 लोगों को मार डाला. और आतंकियों के सरगनों ने धमकी दी है कि वाशिंगटन, लंदन, बर्लिन आदि भी निशाने पर हैं. इराक के विद्रोह से जन्मे इसलामिक स्टेट औफ इराक ऐंड सीरिया यानी आईएसआईएस के पास आज पश्चिमी एशिया का बहुत बड़ा इलाका है और उस के लड़ाके बेरहमी की सीमाएं लांघ कर बेदर्दी से हत्याएं कर खौफ पैदा कर रहे हैं. यह क्रूर संगठन दुनियाभर में अपने तथाकथित इसलामी राज को स्थापित करने का सपना देख रहा है.

धर्म के नाम पर हत्याएं सदियों से हो रही हैं. जर, जमीन और जोरू से ज्यादा धर्म अप्राकृतिक मौतों का जिम्मेदार है क्योंकि धर्म की आड़ में मारने वाले के दिमाग में बैठा दिया जाता है कि हत्याएं वह अपने हित के लिए नहीं कर रहा, ऊपर वाले के आदेशों को लागू करने के लिए कर रहा है और यह पुण्य का काम है जिस में जान चली भी जाए तो भी हर्ज नहीं क्योंकि स्वर्ग में सीट पक्की है.

यह अफसोस है कि धर्म के नाम पर शांति, शराफत और बराबरी का मुखौटा पहने लोगों के चेहरे खूंखार हैं और हाथ अत्याचारों व खून से भरे हैं. आज दुनिया में जितने विवाद हैं उन में से 90 प्रतिशत धर्म के कारण हैं और हर जगह आम आदमी मारे जा रहे हैं. मुंबई में ताजमहल होटल में और पेरिस के बताक्लां कंसर्ट हौल में हो रहे म्यूजिक प्रोग्राम के दौरान हत्याएं धर्म के नाम पर की गईं. मरने वाले उस समय किसी धर्म का प्रचार नहीं कर रहे थे. जमीन और सत्ता के लिए युद्ध लड़े जाएं, यह समझा जा सकता है पर धर्मयुद्धों में हमेशा आम निहत्थों को मारा जाता है क्योंकि दूसरी तरफ अपने धर्म की रक्षा के लिए हथियारबंद सिपाही पर आक्रमणों से ज्यादा आम लोगों की हत्याएं की जाती हैं जो दूसरे धर्म के होते हैं. मानवता को धर्म के नाम पर जितना छला व लूटा गया है उतना लुटेरों और डाकुओं ने नहीं लूटा. आराम से अपने काम में लगे लोगों को पहले धर्म की अफीम पिला दी जाती है और फिर या तो उन्हें हत्यारा बना डाला जाता है या हत्यारों का निशाना.

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