नरेंद्र मोदी की सरकार को बने 4 महीने हो रहे हैं यानी 100 दिन पूरे हो चुके हैं और देश की हालत वैसी ही है जैसी बुरी तरह भ्रष्ट, निकम्मी, निष्क्रिय कांगे्रस सरकार के जमाने में थी. देश के किसी हिस्से में सुखचैन की नई रोशनी की कोई किरण नजर नहीं आ रही. उलटे, जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें नहीं हैं वहां विवाद खड़े हो रहे हैं और वहां के मुख्यमंत्रियों का कहना है कि विवाद, चुनाव जीतने के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ दल करा रहा है. बहुत आशाओं के साथ बने प्रधानमंत्री के साथ ऐसा ही होता है. जैसे, 1947 में आशाएं जगी थीं कि अब सबकुछ अच्छा होगा पर गोरे साहबों के जाने के अलावा सबकुछ वैसा ही रहा या खराब हुआ. जनता बुरी तरह ठगी रह गई पर बोल नहीं पाई क्योंकि जो सरकार बनी थी, वह उस की ही इच्छा पर बनी थी. यही अब मौजूदा नई सरकार के साथ है.

आज जनता में पहले जैसा धैर्य नहीं रहा. समय पहले सप्ताहों और महीनों में गिना जाता था, अब नैनो सैकंडों और सैकंडों में गिना जाता है. 4 महीने अब 4 साल लगते हैं. इन 4 महीनों में मोदी सरकार या तो प्रवचन देती प्रतीत होती रही है या ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ की आस बंधाती रही.

सरकार ने न कानूनों को बदला, न सरकारी कामकाज तेज किया. नरेंद्र मोदी ने लालकिले पर चढ़ कर कह तो दिया कि आप 12 घंटे काम करो वे 13 घंटे काम करेंगे पर वे उन सरकारी अफसरों का क्या करेंगे जिन का काम आम आदमी को काम करने से रोकना है. सरकार ने आम आदमी को राहत देने के वे काम भी नहीं किए जो केंद्र सरकार के दायरे में आते हैं. आयकरों, उत्पादन करों या सेवा करों में न ही छूट दी गई न उन का सरलीकरण किया गया. सरकार हर नागरिक को बेईमान मान कर चल रही है और हर अफसर को शराफत व सेवा का पुतला. दरअसल, जनसेवक कहने मात्र से कोई सेवक नहीं हो जाता. हर चीज के लिए मात्र नोटिस जारी करना ही काफी नहीं होता.

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