आपराधिक घटनाएं कई बार जीवन की उलझनों का आईना बन जाती हैं. दिल्ली में 2 बेटों और 1 पोते द्वारा अपने 88 साल के पिता और 50 साल की अनब्याही बहन की गला घोट कर हत्या कर देने वाली घटना जीवन की समस्याओं को भी उजागर करती है. पिता के पास एक मकान था जो शायद क्व1-1.5 करोड़ का होता, वे उसे अपनी अनब्याही 50 साला बेटी को दे कर मरना चाहते थे ताकि मरने तक बेटी सुरक्षित रहे. यह समस्या का एक पहलू है कि यदि समय पर लड़कियां विवाह न करें और पति व बच्चों वाली न हों तो मातापिता के लिए बोझ बनी रहती हैं. जाहिर है कि मृतक के दोनों बेटे जो खुद 60 व 57 साल के होने लगे थे, अपने हाथों से संपत्ति निकलते नहीं देख सकते थे.

बेटियों के लिए समस्या एक और पहलू है. जब आयु हो तब विवाह न करना घर वालों पर एक गहरा मानसिक बोझ बना रहता है. उन के लिए 50 साला औरत एक सहारा नहीं बन पाती. उस से छुटकारा पाने के लिए हत्या तक की साजिश रची जा सकती है.

हत्या करने वाले बेटों में से एक पर कर्ज का बोझ था जिसे वह पिता के मकान को बेच कर चुकाना चाहता था. यह कर्ज उस ने अपनी बेटी के विवाह के लिए लिया था, जिस ने भाग कर विवाह किया था पर बाद में शायद पिता को बाजेगाजे के साथ विदा करना पड़ा था. इस मामले ने हो सकता है उसे सभी संबंधों के प्रति उदासीन बना दिया हो तभी अपना बोझ हलका करने के लिए पिता व बहन की हत्या करने में उसे कुछ भी गलत नजर नहीं आया. बेटियों का हक बेटों को कितना खलता है, यह भी इस अपराध से झलकता है. संपत्ति पिता की थी और तर्क की दृष्टि से यह उन की मरजी थी कि वे संपत्ति 2 बेटियों में बांटते या सब में या फिर उन बेटों को देते जो तंगी में थे. आज भी बेटे यही सोचते हैं कि सारी संपत्ति पर उन का ही हक है. बहन को हिस्सा देने की सुनते ही उन के दिल पर सांप लोटने लगते हैं और आंखों में खून उतर आता है. यह मामला चाहे अपराध का ही हो पर साफ है कि सामाजिक व पारिवारिक आर्थिक बोझ कई बार इतना ज्यादा हो जाता है कि लोग परिणाम की चिंता करना ही छोड़ देते हैं. अपराध करने वालों को यह तो मालूम होता ही है कि पकड़े गए तो जो पाना चाहा वह तो हाथ में आने से रहा, जो है वह भी फिसल जाएगा.

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