राजस्थान के कंजर समुदाय के बारे में लोगों की राय अच्छी नहीं है. धारणा यह है कि कंजर आमतौर पर अपराधी होते हैं. इस जाति का हालांकि अपना एक अलग इतिहास है, पर उस से वास्ता न रखते हुए लोग यही मानते हैं कि अपराधी प्रवृत्ति के कंजर मेहनत के बजाय लूटपाट कर के गुजारा करते हैं. इस जाति के पुरुष नशे में धुत रहते हैं और औरतें बांछड़ा जाति की तरह देहव्यापार करती हैं. ये लोग असभ्य, अशिक्षित और जंगली हैं, इसलिए सभ्य समाज इन से दूर ही रहता है.

हालांकि यह पूरा सच नहीं है, लेकिन एक हद तक बात में दम इस लिहाज से है कि कंजरों को कभी आदमी समझा ही नहीं पाया और न ही इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की कोई उल्लेखनीय कोशिश ही की गई.

राजस्थान के जिला बूंदी के एक गांव शंकरपुरा में जन्मी कंजर युवती पिंकी की दास्तान दुखद और फिल्मी सी है. पिंकी बेइंतहा खूबसूरत थी, पर उस की बदकिस्मती यह थी कि जब वह 15 साल की हुई तो मांबाप का साया सिर से उठ गया. लेकिन वह लावारिस कहलाने से इसलिए बच गई, क्योंकि उस के पिता ने 2 शादियां की थीं. जब सगे मांबाप की मौत हो गई तो सौतेली मां ने उसे सहारा दिया.

सौतेली मां के पास भी स्थाई आमदनी का कोई जरिया नहीं था, इसलिए वह पिंकी को साथ ले कर शंकरपुरा में ही रहने वाले अपने भाई राजा उर्फ ठेला के घर ले गई. इस तरह पिंकी को छत तो मिल गई, पर प्यार नहीं मिला. सौतेले मामा राजा के घर की भी माली हालत ठीक नहीं थी. जैसेतैसे खींचतान कर तीनों का गुजारा होता था. कई बार तो फांकों की भी नौबत आ जाती थी.

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