सुबह 9 बजे तैयार हो कर दफ्तर के लिए निकलने ही वाला था कि पत्नी, जो दूसरे शहर में रहती है, का फोन मेरे मोबाइल पर आया. सुन कर मुझे ऐसे लगा कि पैरों तले जमीन ही खिसक गई हो. सारा दिन यही सोचता रहा कि आखिर क्या हो गया है आज की युवा पीढ़ी को. न सिर्फ पढ़ेलिखे और शहरों में रहने वाले लड़केलड़कियों के बीच ऐसा कुछ होता है, हमारे गांव भी इस तरह की संस्कृति से अछूते नहीं रह गए हैं. ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि इस का जीताजागता उदाहरण मुझे अपनी ही रिश्तेदारी में देखने को मिला.
दरअसल, हमारी पत्नी गांवों से संबंध रखती है. उस की दीदी की बेटी ने 12वीं पास कर के बीए प्रथम वर्ष में निकट के दूसरे गांव में दाखिला लिया था. एक दिन कालेज से फोन आया कि मातापिता आ कर अपनी बेटी को वापस घर ले जाएं. जब पत्नी की दीदी और जीजाजी वहां पहुंचे तो महिला प्रोफैसर ने बताया कि बच्ची 5 माह के गर्भ से है और तबीयत बिगड़ जाने की स्थिति में कालेज में ही गश खा कर गिर गई थी. ऐसे में कालेज प्रशासन के लिए उसे रखना ठीक नहीं था.
सब से शर्मनाक बात यह थी कि उस के गर्भ में जो 5 माह का बच्चा पल रहा था उस का जिम्मेदार उस की बूआ का लड़का था जोकि मां के अकस्मात गुजर जाने के बाद से इन के पड़ोस में ही रहने लगा था अपने पिता के साथ. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि एक ओर खाई तो दूसरी तरफ कुआं. घिनौनी हरकत करने वाला बाहर का व्यक्ति होता तो उसे पुलिस के हवाले किया जा सकता था या उस पर दबाव डाल कर बच्ची से शादी करवाई जा सकती थी.
एक और गंभीर बात, डाक्टर के अनुसार उस का गर्भ गिराया नहीं जा सकता था क्योंकि उस से उस की जान को खतरा हो सकता था. इधर, हिंदू समाज ऐसे रिश्ते को शादी के बंधन में बंधने से रोकता है. इन दोनों ने जो भी कुछ किया, चाहे वह अनजाने में किया हो या जानबूझ कर, किसी भी हालत में समाज को स्वीकार्य नहीं होगा. हम अपनेआप को कितना भी तरक्कीपूर्ण समाज कह लें, कई परिस्थितियों में हम अपनेआप को असहाय ही पाते हैं.
संजय कुमार, बेंगलुरु (कर्नाटक)