मुझे आवश्यक काम से अपनी पत्नी के साथ मुंबई जाना पड़ा. ट्रेन शाम को कुर्ला टर्मिनस पर पहुंची. ठंड काफी थी. बुजुर्ग होने के चलते हमें काफी परेशानी हो रही थी. कुर्ला टर्मिनस से अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचाने के लिए कोई टैक्सीवाला तैयार नहीं हो रहा था. मेरा बेटा स्टेशन पर कार ले कर आने वाला था किंतु अचानक तबीयत खराब हो जाने के कारण स्टेशन पर न पहुंचने की सूचना मोबाइल पर मिली. हम पतिपत्नी काफी चिंतित हो गए. स्टेशन से घर काफी दूरी पर था. हम लोगों के पास सामान भी अधिक था. हम लोगों को काफी चिंतित देख कर एक नवदंपती, जो ट्रेन में हमारे साथ ही सफर कर रहे थे, पास आए और हमारी परेशानी पूछी.

हम लोगों ने कहा कि इस महानगरी में हम पहली बार आए हैं और हम कैसे अपने बेटे के घर पहुंचे, पता नहीं चल रहा है. इतना सुन कर उन नवदंपती ने कहा, ‘‘आप को जहां जाना है केवल हमें वहां का पता बताएं. हम लोगों को अपने जीजाजी एवं दीदी के घर जाना है. जीजाजी कार ले कर स्टेशन आने वाले हैं.’’ नवदंपती के जीजाजी कार ले कर थोड़ी देर में आ गए. उन नवदंपती ने हमारा अपने जीजाजी से परिचय करवाया एवं उन्हें हम लोगों की स्थिति से अवगत कराया. उन्होंने हम दोनों को कार में बैठा लिया. उन्होंने हमें बेटे के घर सकुशल पहुंचा दिया जबकि उन्हें वहां से दूसरी दिशा में अपने घर के लिए जाना पड़ा.

इस स्वार्थी दुनिया में ऐसे मददगार लोग जब मिलते हैं तो लगता है कि मानवता आज भी जिंदा है. जब भी इस घटना की याद आती है तो हम दोनों उन सज्जन नवदंपती के प्रति नतमस्तक हो जाते हैं.      

– देवेंद्र प्रसाद गुप्त, गया (बिहार)

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मेरे बेटे ने ट्रेन के एसी टू टायर डिब्बे में हमारा आरक्षण कराया. निश्चित दिन, निश्चित समय पर हम हम रेलवे स्टेशन पहुंच गए. ट्रेन आई तो हम भी सामान सहित जल्दी से डिब्बे में चढ़ गए. हमारी सीट नंबर पर पहले से कुछ लोग सामान लिए आराम से बैठे थे. हम वरिष्ठ नागरिकों को देख कर भी वे लोग सीट खाली नहीं कर रहे थे. उन की बदतमीजी पर खीज कर जैसे ही मैं कुछ बोलने वाली थी, देखा डिब्बा तो एसी थ्री टायर है, हमारा आरक्षण एसी टू टायर में था. मैं बहुत शर्मिंदा हुई. उन लोगों ने एसी टू टायर डिब्बे में हमारा सामान रखने में मदद भी की. हमें दूसरों को गलत ठहराने से पहले खुद अच्छी तरह देख, सोचसमझ लेना चाहिए.

– रेखा सिंघल, हरिद्वार (उत्तराखंड)

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