हमारे संयुक्त परिवार में मासिकधर्म के दौरान घर की स्त्रियों को घर के किसी भी सदस्य को छूने की सख्त मनाही रहती थी. उस महिला को एक अलग कमरा दे दिया जाता था. यदि हम बच्चे भी गलती से उन्हें छू लेते तो हमारे ऊपर गंगाजल या गौमूत्र छिड़कते थे. हमें यह बताया गया था कि जिस के ऊपर छिपकली गिर जाती है उसे 5 दिन की छूत लग जाती है और हम बच्चे, जोकि 5 से 10 साल के बीच के थे, इसे सच मानते. एक दिन मैं और मेरी 7 वर्षीया बड़ी बहन पड़ोसी के घर में उछलकूद में लगे थे कि अचानक मेरे ऊपर छिपकली गिर गई. मेरी बहन दौड़ते हुए आई और बोली, ‘‘इसे मत छूना, इसे छूत लग गई है.’’ पड़ोसी के घर में सभी लड़केलड़कियां जवान थे. वे बेचारे शर्म से गड़े जा रहे थे. आखिर में उन की मां हम दोनों को घर वापस लाईं और घरवालों को हमारी करतूत भी बताई. उस दिन घर में सब को बड़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ी.    

दीपा पांडेय, लखनऊ (उ.प्र.)

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‘‘मांजी, थोड़ी रोटी दे दो. बहुत भूख लगी है,’’ बड़ी सी बोरी में कचरा डालते हुए उस ने कहा. श्यामल वर्ण, मैलेकुचैले कपड़े, बिखरे बाल, अवस्था 11-12 वर्ष रही होगी. घरों से कचरा इकट्ठा करना उस का एकमात्र जीविका का साधन था. अकसर खाने के लिए वह कुछ मांग लेता और मेरे लिए तो ‘अन्नदान, महादान’ है, खाने को कुछ न कुछ दे देती. उस दिन किसी कारण मेरा मूड बेहद उखड़ा हुआ था. ऐसे में उस की मांग से मैं चिढ़ गई. नहीं तो मैं न कह सकी मगर रात की बची रोटियां, जो मैं जानवरों को डाला करती थी, ठंडी सब्जी के साथ उस के सामने रख दीं. वह इत्मीनान से खाने लगा. तृप्ति का वही भाव जो गरम रोटी खाते समय उस के चेहरे पर होता था. हृदय तनिक द्रवित हुआ.

मैं ने पूछा, ‘‘क्यों रे, रोज मुझ से ही रोटी मांगता है, किसी और घर की रोटी अच्छी नहीं लगती क्या?’’

वह बोला, ‘‘जहां से मिलती है, वहीं से तो मांगूंगा. बाकी लोग या तो मना कर देते हैं या सड़ागला, खराब खाना पकड़ा देते हैं. कई लोग तो गिलास में पानी तक नहीं देते कि कहीं उन का धर्म भ्रष्ट न हो जाए हमारे छूने से.’’ मैं अवाक थी उस की बात सुन कर और अपने व्यवहार पर शर्मिंदा भी. आज के तथाकथित आधुनिक समाज में अभी तक छुआछूत की विकृत मानसिकता के शिकार हैं लोग, मैं हैरान थी और क्षुब्ध भी.

दीपिका अरोड़ा, जालंधर (पंजाब)

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