मेरे बेटे के दोस्त वरुण को अपनी नौकरी बचाना मुश्किल हो गया था. कारण थे, पंडितों का जाल, परिवार व उस की मां का अंधविश्वास. हुआ यह कि 1 वर्ष से गंभीर रूप से बीमार पिता की मृत्यु के बाद क्रियाकर्म आदि का उत्तरदायित्व इकलौते बेटे वरुण को संभालना था. वरुण ने 2 माह पहले ही नई कंपनी जौइन की थी. सो, 1 हफ्ते की छुट्टी पर आया वरुण, पिता के चौथे पर ही सारी क्रियाएं पूरी कर वापस नौकरी पर जाना चाहता था. पर उस की मां के साथसाथ ताऊताई आदि ने भी उस की इस बात पर भर्त्सना की. उसे कर्तव्य याद दिलाया. इस स्थिति में वरुण ने अपने बौस से अनुनयविनय कर के छुट्टियां बढ़वाईं. उतने दिन गरुड़ पुराण सुनना, हर समय परिवार के साथ बैठना जरूरी बताया गया. सो, वह ‘वर्क फ्रौम होम’ भी नहीं कर सकता था. आखिर कब तक ऐसी बेडि़यों से हम खुद को और आने वाली पीढि़यों को बांधे रखेंगे?
मीताप्रेम शर्मा, मुनीरका (न.दि.)
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मेरी बूआ सास की शादी ऐसे घर में हुई जहां लोग अंधविश्वासी थे. उन की सास बोलती कि बिना नहाए रसोईघर में नहीं जाना. बात पुरानी है जब घर में नल नहीं होता था. पानी बाहर कुएं से भर कर लाना पड़ता था. खाने, नहाने के लिए पानी भर कर रखना पड़ता था. सर्दी में भी उन की सास बिना नहाए रसोईघर में घुसने नहीं देती थी. बहुत दिनों तक ठंडे पानी से नहानहा कर उन्हें गठिया रोग हो गया. हाथपैर सब ठंडे हो गए. तब भी बिना नहाए रसोईघर में नहीं जाने दिया जाता था. उन को भारी कष्ट झेलना पड़ा. और वे मां भी नहीं बन सकीं. वैसे बहुत इलाज करवाया पर सब व्यर्थ गया. परिवार के अंधविश्वास की वजह से उन की जिंदगी बरबाद हो गई.
विद्यावती देवी (न.दि.)
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मेरे बेटे का जब पहला दांत निकला, मैं अपने पति के साथ पीहर में थी. पंजाब में रिवाज है जब बच्चे का पहला दांत निकलता है तो आसपड़ोस में गोलागिरी और बताशे बांटे जाते हैं. उन का मानना है कि जिस के दांत सुंदर होते हैं, यदि वह गोला चबा कर बच्चे के मुंह में फूंक दे तो उस के दांत भी वैसे ही सुंदर निकलेंगे. यह काम मेरी बहन को सौंपा गया. जैसे ही गिरी चबा कर बेटे के मुंह में फूंकने लगी, मेरे पति चिल्ला उठे, ‘‘रुको, यह क्या कर रही हो? अपने मुंह की गंदगी को बच्चे के मुंह में डाल रही हो? बीमार करना है क्या?’’ वे कमरे से बाहर चले गए. सब चुप हो गए. ऐसी बेवकूफी भरी प्रथा को आखिर हम क्यों नहीं छोड़ते?
शशि बाला, उत्तम नगर (न.दि.)