बात पुरानी है. हमारे घर के पास एक परिवार रहता था. करवाचौथ का व्रत सास व बहू दोनों ने रखा हुआ था. सारा दिन दोनों का काम करते हुए आराम से गुजर रहा था. बहू बेचारी व्रत में भूखप्यास को भूलने के लिए काम पर काम किए जा रही थी.
शाम को चांद निकलने के समय अचानक बादल छा गए और बूंदाबांदी शुरू हो गई. चांद बादल में छिप गया. काफी रात हो गई पर चांद नहीं दिखा. काफी इंतजार के बाद बहू के ससुर और पति ने उन दोनों से कहा कि चांद निकल चुका है लेकिन बादलों में छिप गया है इसलिए तुम दोनों जल चढ़ा कर खाना खा लो. इस पर बहू तो तैयार हो गई मगर सास ने न खुद खाया न बहू को खाने दिया. सुबह बहू की काफी तबीयत खराब हो गई, वह गर्भवती थी. उसे तुरंत डाक्टर के यहां ले जाना पड़ा.
आशा गुप्ता, जयपुर (राज.)
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एक दिन 3 पंडे उजले सफेद धोती-  कुरता पहने, माथे पर टीका और चंदन का लेप लगाए हमारे घर आए. आते ही दादी से बोले, ‘‘माताजी, हम हरिद्वार के मशहूर हस्तविद्या के जानकार हैं. माथा देख कर भी भूत, वर्तमान और भविष्य बता देते हैं. हमें मां मंशा देवी का आशीर्वाद मिला हुआ है. माताजी, आप का माथा बता रहा है कि आप का छोटा बेटा शनि के कब्जे में है. जो भी काम हाथ में लेता है, नुकसान ही नुकसान होता है.’’
अब एक पंडे ने हाथ देखना शुरू किया. उस ने दादी को भयभीत कर दिया. जब दादी ने उस का निवारण पूछा तो पंडे ने मां मंशा देवी का हवाला दे कर कहा, ‘‘मांजी, एक गिलास में पानी मंगाइए.’’
पानी आया, पंडे ने मंत्र पढ़ा. गिलास में फूंक मारी और दादी से पानी पीने को कहा. दादी ने पानी पिया, कुछ कसैला सा लगा. दादी ने सिर झटका. पंडा मुसकराते हुए बोला, ‘‘माताजी, मंशा देवी की कृपा से आप के बेटे के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. माताजी, अब मंशा देवी की भेंट 500 रुपए शीघ्र दीजिए. अन्यथा अनर्थ हो जाएगा.’’
दादी डर गईं. अंदर से 500 रुपए निकाल लाईं और पंडे को थमा दिए. उन पंडों ने बुआजी और मम्मीजी से भी पैसे झटक लिए.
पंडे ने दूसरी चाल चली और कहा, ‘‘हम सोने को भी चमकाते हैं, बिलकुल नया जेवर बन जाएगा.’’ तभी दादाजी आ गए. दादाजी को देखते ही पंडे चौंके. अपना झोलाडंडा पकड़ा और नौ दो ग्यारह हो गए.
दादाजी ने पूछा, ‘‘वे लोग क्या कर रहे थे?’’ तब तक दादी सामान्य हो गई थीं. कहा, ‘‘भविष्य बता रहे थे. हम तीनों से
500-500 रुपए ले गए.’’
धर्म और अंधविश्वास ने हमारे समाज को इस तरह बेडि़यों में जकड़ रखा है कि आस्था के नाम पर लोगों की आंखें बंद हो जाती हैं और वे लुटपिट जाते हैं और पता भी नहीं चलता.
नितिन मेहरा, नैनीताल (उत्तराखंड) 

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