भक्तों को प्रसन्न और तनावमुक्त रहने का उपदेश आर्ट औफ लिविंग के जरिए पिलाते रहने वाले आध्यत्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर खुद तनाव और अवसाद के शिकार लग रहे हैं. यमुना किनारे आयोजित अरबों रुपए के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक शो का कोई खास रेस्पौंस उन्हें नहीं मिला है, इसलिए उन की चिंताएं अब विस्तार लेती जा रही हैं. इसे नोबेल पुरस्कार की हवस और कुंठा ही कहा जाएगा कि रविशंकर को कहना ही पड़ा कि उन्हें भी कभी नोेबेल की पेशकश हुई थी पर उन्होंने उसे ठुकरा दिया था और पाकिस्तान की मलाला को नोबेल देना उन की नजर में गलत था. महान बनने के लिए लोग जिंदगीभर धन के अलावा कुछ न कुछ ठुकराते ही रहते हैं पर सचमुच में नोबेल पाने के लिए क्या करना पड़ता है, यह रविशंकर को नोबेल शांति विजेता कैलाश सत्यार्थी से पूछना चाहिए. 

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