गलती मेनका गांधी की नहीं, बल्कि उस एक वैचारिक छत की है जिस के नीचे वे शरण लिए हुए हैं. इसलिए कुछ तो असर पौराणिकवादियों का उन पर पड़ना स्वाभाविक है. गोवा फैस्ट 2017 में बोलते उन्होंने कहा कि लड़कियों से छेड़छाड़ के लिए फिल्में जिम्मेदार हैं, सभी फिल्मों में रोमांस की शुरुआत छेड़छाड़ से होती है. इस से छेड़छाड़ को बढ़ावा मिलता है.

अब तक पर्यावरण प्रदूषण के लिए पहचानी जाने वाली मेनका को कुछ दिनों से लड़कियों की सुरक्षा की चिंता सताने लगी है पर इस हड़बड़ाहट में एक पुरानी बात को नए तरीके से बोलने के चक्कर में वे कायदे की बात नहीं कर पा रही थीं कि छेड़छाड़ पुरुषों की लंपट मानसिकता की देन है जिस के लिए दोष लड़कियों या फिर फिल्मों को क्यों दिया जाए. रही बात फिल्मी रोमांस के शुरुआत की, तो आजकल की फिल्मों में ऐसा नहीं होता. 70-80 के दशकों में जरूर ऐसा होता था. बेहतर होगा कि वे कुछ ताजी फिल्में देखें और समझें कि नई पीढ़ी भी परिपक्व रोमांस करने लगी है. यह भी मेनका नहीं बता पाएंगी कि जब फिल्में नहीं थीं, तब छेड़छाड़ की वजहें क्या रही होंगी.

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