जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने राजनीति में चढ़ाव ज्यादा, उतार कम देखे हैं. उन्हें पहली दफा 1975 में मध्य प्रदेश की जबलपुर सीट से जयप्रकाश नारायण की पहल पर संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनाया गया था. प्रयोग सफल रहा तो फिर शरद यादव ने मुड़ कर नहीं देखा.

धीरेधीरे वे भी दूसरे लोहियावादियों की तरह मतलबपरस्त और सत्ताभोगी होते चले गए. अब शरद यादव फिर सुर्खियों में हैं, जो कथित तौर पर जदयू से निकाल दिए गए हैं. कथित तौर पर इसलिए कि यह उन का और नीतीश का एक और प्रयोग हो सकता है जिस का मकसद नीतीश के प्रति जरूरत से ज्यादा नाराजगी न बढ़ने देना है. वाकई उन्हें कुछ करना था तो उस वक्त करना चाहिए था जब नीतीश भाजपा की गोद में बैठ रहे थे. अब सियायत से खारिज होते शरद यादव की मंशा अपने बेटे शांतनु बुंदेला को राजनीति में स्थापित करने की है यानी किसी वाद के कोई माने अब उन के लिए भी नहीं रहे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...