सरित प्रवाह, सितंबर (प्रथम) 2013
‘सीमा पर हमला’ के तहत आप के विचार पढ़े तो याद आया कि पाकिस्तान ने अपने संविधान में संशोधन कर अपने प्रधानमंत्री को सेना का ‘सुप्रीम कमांडर’ घोषित कर उन को ‘असीमित पावर’ दी थी लेकिन जिस तरह पाक सेना बारबार एलओसी पर भारतीय सैनिकों का खून बहा कर, अंतर्राष्ट्रीय कायदेकानूनों का उल्लंघन कर रही है और पाक पीएम मेमने की तरह मरी सी आवाज में शांति, भाईचारे व वार्त्ता का राग अलाप रहे हैं वह यह कड़वा सच ही उजागर करती है कि इस्लामाबाद की गद्दी पर चाहे कोई भी पीएम बन बैठे, राज वहां की सेना ही करेगी.
दुख है तो बस इस बात का कि हमारे प्रशासक आतंकवाद से ग्रस्त पड़ोसी की ही मानो हां में हां मिलाते हुए उस के जैसी राह पकड़ लेते हैं. यह हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व की अक्षमता, कायरता व कमजोरी को ही प्रमाणित करता है.
ताराचंद देव रैगर, श्रीनिवासपुरी (न.दि.)
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‘सीमा पर हमला’ शीर्षक से प्रकाशित आप की संपादकीय टिप्पणी पढ़ी. अच्छी लगी. सीमा के प्रहरी को सलाम. भारतवर्ष के प्रहरियों की हौसलाअफजाई कर के आप ने सभी देशवासियों का उत्साहवर्धन किया है. पाकिस्तान के जवानों द्वारा हमारे प्रहरियों को धोखा दे कर मारना घोर निंदनीय है. हमारी वर्तमान सरकार की नीयत में खोट होने के चलते हमारी विदेश नीति धराशायी होती प्रतीत हो रही है.
डा. जसवंत सिंह, कटवारिया सराय (न.दि.)
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आप की टिप्पणी ‘सीमा पर हमला’ पढ़ी. आप ने सच कहा, जंग खुद एक मसला है, हल नहीं. पाकिस्तान 66 सालों से भारत के खिलाफ लगातार विषवमन कर रहा है. समझौता ऐक्सप्रैस चले, दोनों देशों के गायक, क्रिकेटर, फिल्मकार, साहित्यकार कितना ही संवाद क्यों न साधें, वहां के हुक्मरानों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उन की कुरसी की सलामती के लिए कश्मीर मुद्दे को बनाए रखना एकमात्र शर्त है. उन का एक ही एजेंडा है आतंकियों को शह देना. पाक कभी न सुधरने वाली शै है.पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बेशक जर्जर है, वह युद्ध झेल नहीं सकता पर भारत को उकसाने की कार्यवाही लगातार जारी रखे हुए है. दरअसल, अमेरिका, सार्क देशों पर निगाह रखने के लिए पाकिस्तान को अपना बेस कैंप बनाना चाहता है. अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ को अपने पांव की जूती समझता है. वह उस को उकसाना और सहलाना दोनों काम साथसाथ करता है.
आप ने सही कहा है कि कूटनीतिक स्तर पर ही कश्मीर मसले के समाधान की पहल होनी चाहिए.
इंदिरा किसलय, नागपुर (महा.)
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संपादकीय टिप्पणी ‘सीमा पर हमला’ में पाकिस्तानियों द्वारा की गई भारतीय जवानों की हत्या पर जो आक्रोश प्रकट किया है वह भारत की जनता का भी है. हमला चाहे सैनिकों द्वारा किया जाए या घुसपैठियों द्वारा, पाक सेना का हाथ अवश्य होता है. निश्चय ही दोनों देश युद्ध लड़ने की हालत में नहीं हैं. कितना अच्छा होता कि पाकिस्तान लोकतंत्र के साथ अपने देश को विकास के मार्ग पर ले जाता पर उस की मति मारी गई है. वह हमेशा भारत के साथ युद्ध छेड़ने की फिराक में रहता है. भारत से दुश्मनी बनाए रखने और अमेरिका से पैसे ऐंठने को वह बड़ी राजनीति समझता रहा है.
पाकिस्तान न तो खुद चैन से जीएगा और न ही पड़ोसियों को चैन से जीने देगा. इसलिए, अच्छा यही होगा कि भारत इन हमलों का प्रतिकार तो करे पर युद्ध में उलझने से बचे.
माताचरण पासी, वाराणसी (उ.प्र.)
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संपादकीय टिप्पणी ‘सीमा पर हमला’ में आप के विचार पढ़े. हर बड़ी घटना के बाद सरकार कहती है कि सीमाओं की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाएंगे, हर जरूरी कदम उठाए जाएंगे और सेना सीमा की रक्षा करने में सक्षम है. वहीं सेना कहती है कि बस, सरकार के आदेश का इंतजार है. यही हमारी कमजोरी समझी जाने लगी है. ऐसी कमजोरी कि सीमा पर हमारे जवानों को मारा जा रहा है.समय की नजाकत को देखते हुए चीन व पाकिस्तान को उन्हीं की भाषा में जवाब देने और बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, म्यांमार सीमा पर चौकसी कड़ी करने का आदेश देने में सरकार को हिचक नहीं होनी चाहिए. जम्मू के पुंछ में अघोषित पाकिस्तानी हमले में शहीद 5 जवानों में से 1 बिहरा (बिहार) के विजय कुमार राय की पत्नी पुष्पा देवी द्वारा ‘मुआवजा नहीं जवाबी कार्यवाही चाहिए’ कहते हुए मुआवजा लौटा देना गौरतलब है. यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि 2014 तक अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों की वापसी के बाद हमारी चुनौतियां और बढ़ेंगी.
कृष्णकांत तिवारी, भोजपुर (बिहार)
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आप की टिप्पणी ‘किसानों की जमीन’ और ‘पिटाई समस्या का हल नहीं’ पढ़ीं. आप के विचार समाज के लोगों को जागरूक करने की दिशा में बेहद कारगर हैं. यह पीड़ाजनक बात है कि सरकारें कानून का खौफ खाए बिना किसानों की जमीनों की छीनाझपटी कर अरबों रुपयों का बंदरबांट कर रही हैं. बेचारे किसान ठगे जा रहे हैं. यह तो भला हो न्यायालयों का, ‘कानून को ठेंगा’ दिखाने वालों को वे यह बता रहे हैं कि कानून से बड़ा कोई नहीं है चाहे वह आम आदमी हो या राजनेता.
प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)
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भूमि की बंदरबांट
सितंबर (प्रथम) अंक में प्रकाशित ‘भूमि अर्जन विधेयक 2011 : कानून के सहारे हक’ लेख में देश के आजाद होने से अब तक जिस प्रकार से देश के नेताओं, नौकरशाहों, भूमाफियाओं, उद्योगपतियों, धार्मिक संतों द्वारा भूमि पर कब्जा करने का उल्लेख किया गया है वह सराहनीय है. मैं भूमि अर्जन विधेयक 2011 के संबंध में देश की लोकप्रिय पत्रिका सरिता के माध्यम से भारत सरकार लोकसभा, राज्यसभा के सदस्यों से सुझावों के रूप में कहना चाहूंगा कि कहने को तो भारत कृषि प्रधान देश है और इस की आबादी 130 करोड़ है. देश की इस आबादी को अन्न, फल, सब्जी व खाद्य पदार्थ की जितनी जरूरत है उस के मुताबिक कृषि की उतनी उपजाऊ जमीन को सुरक्षित रखा जाए ताकि देश को जमीन के अभाव में अनाज व खाद्य पदार्थ विदेशों से आयात न करना पड़े.
देश के उद्योगपतियों, राजनेताओं व नौकरशाहों और तथाकथित संतों ने देश की कृषि भूमि पर फार्म हाउस व धार्मिक आश्रमों के नाम पर जितनी उपजाऊ जमीन पर कब्जा कर रखा है उसे वापस लेने का प्रस्ताव भी विधेयक में शामिल किया जाए.
देश के महानगरों, नगरों व कसबों में भूमाफियों ने गरीब काश्तकारों से कौड़ी के भाव में काफी कृषिभूमि ले कर कब्जा कर रखा है, वे बाद में आवास एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बढ़े हुए दामों पर बेचेंगे. इस तरह की सभी जमीनें सरकार वापस लेने हेतु भूमि अर्जन विधेयक में प्रस्ताव रखे.
जगदीश प्रसाद पालड़ी, जयपुर (राज.)
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राजनीति का काला चेहरा
सितंबर (प्रथम) अंक में प्रकाशित लेख ‘लोकतंत्र में लूटतंत्र की ताकत’ में काफी निर्भीकता से रेतमाफिया व सत्ता के गठबंधन का कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत किया गया है. चुनावों में बेशुमार चंदा देने वालों के गैरकानूनी गोरखधंधों को प्रश्रय देना सियासत का चरित्र बन गया है. सियासतदानों के गैरकानूनी रास्ते में अडं़गा डालने वाले कर्मनिष्ठ व ईमानदार अधिकारियों को प्रताडि़त किया जाता है.
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन व उन्हें क्लीन चिट देने वाले डीएम रविकांत सिंह के स्थानांतरण की कार्यवाही निर्लज्जता, स्वार्थपरता और तानाशाही की पराकाष्ठा है. राजस्थान में एसपी पंकज चौधरी, हरियाणा में आईएएस अशोक खेमका, गुजरात में आईपीएस अशोक भट्टर का भी कुछ ऐसा ही हश्र हुआ है. क्या इस प्रकार की कार्यवाहियों से साहसी व कर्तव्यपरायण अफसर कुंठित व हतोत्साहित नहीं होते हैं?
अर्चना विकास खंडेलवाल, जबलपुर (म.प्र.)
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सितंबर (प्रथम) अंक पढ़ा. ‘लैपटौप का लौलीपौप’ लेख में दर्शाया गया है कि यह सपा सरकार की एक लुभावनी चाल है, बिलकुल सही है. यह युवा वोटरों को लुभाने की तकनीक मात्र है. देखा जाए तो अभी हमारे देश की शैक्षणिक प्रणाली उतनी विकसित नहीं हुई है कि छात्रों को लैपटौप व टैबलेट पर आश्रित होना पड़े. मीडिया के बाद यदि कोई छात्र तकनीकी क्षेत्रों में अपना कैरियर बनाना भी चाहता है तो इस के लिए वह जिस संस्थान में नामांकन करवाता है वहां आवश्यकतानुसार लैपटौप या टैबलेट दिए जाते हैं, जिस की कीमत उन की फीस में ही संलग्न होती है.गौरतलब है कि विश्व में जनसंख्या जिस प्रकार बढ़ रही है, भविष्य में खाद्यान्न का संकट एक बहुत बड़ी समस्या बनने वाली है. ऐसे में लैपटौप बांट कर ग्रामीण युवकों का शहरीकरण करना क्या अनुचित नहीं है? क्या लैपटौप चलाने वाले युवकयुवती अच्छे कृषक बन पाएंगे? भविष्य की आवश्यकता को देखते हुए सरकार को चाहिए कि वह युवकों को कृषि क्षेत्र की ओर प्रोत्साहित करे. लैपटौप के बदले में कृषियंत्र या कृषि संबंधी जानकारी दे ताकि भविष्य में खाद्यान्न संकट की समस्या उत्पन्न न हो. सरकार को यह सोचना चाहिए कि डाक्टर या इंजीनियरों की संख्या दोचार कम भी हो, तो भी कोई बात नहीं परंतु किसानों की कमी मनुष्य ही नहीं बल्कि जीवजंतुओं की भी मौत का कारण बनती है.
आरती प्रियदर्शिनी, गोरखपुर (उ.प्र.)
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खुदगर्जी से कायम नाजायज रिश्ते
सितंबर (प्रथम) ‘ब्लैकमेलिंग का फसाद यौन शोषण’ पढ़ कर लगा जैसे वर्तमान समय में सैक्स को महत्त्वाकांक्षा की सीढ़ी और इस के पूरा न होने पर ब्लैकमेलिंग का हथियार बना दिया गया है. राजनीतिज्ञों के साथ सैक्स स्कैंडल ज्यादा जुड़े रहे हैं. इस का अहम कारण है राजनीतिज्ञों की मानसिकता कि जब वे सत्ता पर काबिज होते हैं तो उन्हें याद ही नहीं रहता कि उन का ध्येय देशसेवा है.
राजकुमार का 3 वर्ष से यौन शोषण होता रहा, फिर भी वह चुप था. उस ने राघवजी को अपने लक्ष्यप्राप्ति का साधन बनाया. दंड का भागी तो यह लड़का भी है. बेहद दुखद स्थिति है कि हम ऐसे राजनेताओं को पाल रहे हैं जिन का चरित्र ही खराब है. नारायण दत्त तिवारी का चरित्र तो उस तसवीर के साथ जगजाहिर हो गया था जब राजभवन में वे 3 लड़कियों के साथ रंगरेलियां मना रहे थे. लेकिन उज्ज्वला शर्मा जैसी महिलाएं भी कम दोषी नहीं जो कभी तो अपनी उम्मीदों को परवान चढ़ाने के लिए प्रेयसी बनती हैं और कभी यौन शोषण का आरोप लगाती हैं. मधुमिता ने भी यही किया और जान गंवा बैठी. फिलहाल, गोआ में एक राजनेता कई लड़कियों के साथ मौजमस्ती करते हुए पकड़े गए. आखिर कैसे घिनौने प्रतिनिधियों को चुन रहे हैं हम.
सवाल उठता है उन का जो यौन शोषण का आरोप लगाते हैं. आखिर क्यों वे ऐसे आरोप मढ़ते हैं? अभी यौन शोषण और बलात्कार जैसे शब्द भ्रमित करते हैं. तस्लीमा नसरीन ने लेखक सुनील गंगोपाध्याय पर यौन शोषण का आरोप लगाया क्योंकि उन की पुस्तक ‘द्विखंडिता’ पर रोक लगाई गई. लेखिका ने ट्वीट किया, ‘सुनील गंगोपाध्याय ने मेरी किताब पर रोक लगवाई. उन्होंने मेरा और दूसरी महिलाओं का यौन शोषण किया. वे साहित्य अकादमी के अध्यक्ष हैं, यह शर्मनाक है.’
मतलब, यदि पुस्तक हिट होती तो सब जायज था. अभिनेत्री रंजीता ने स्वामी नित्यानंद पर आरोप लगाया कि उन्होंने 40 बार उस का रेप किया.
दरअसल, आज यौन शोषण शब्द तब उभरता है जब कोई महत्त्वाकांक्षा की सीढ़ी से लुढ़कता है. जब स्त्रीपुरुष आपसी सहमति से एकदूसरे से संबंध बनाते हैं तो फिर वहां शोषण जैसा सवाल ही कहां रह जाता है. सच तो यह भी है कि प्राकृतिक यौन तुष्टि केवल पुरुष ही नहीं स्त्री भी करती है और इस के लिए वह तत्पर भी रहती है. इसलिए यौन शोषण जैसा घटिया शब्द बोलना बंद हो. जितना दोष यौन शोषक का है उतना ही शोषित का भी. इसे मजाक न बनाएं.
शशिकला सिंह, सुपौल (बिहार)