‘शराब पर पाबंदी’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय टिप्पणी में आप का चिंतन अच्छा लगा. यों तो आजादी के बाद कुछ सरकारों द्वारा नशाबंदी की कोशिश की गई थी पर संपादकीय में बताए कारणों से वे फेल रहीं. शराबबंदी से सरकारों की आय घटती है. आप का चिंतन कि शराब कोई भोजन नहीं कि उस के बिना आदमी जी न सके, बहुत ही सटीक है. प्रकृति भी पहली बार शराब तथा धूम्रपान करने वाले की आंखें लाल कर, खांसी से चेतावनी देती है. आमदनी का जो सवाल है तो वह नशाबंदी के फायदे के आगे कुछ भी नहीं. कुछ साल पहले सरकारें लौटरी टिकट बेच पैसे बनाती थीं पर बाद में उसे बंद कर लोगों को जुआरी होने से बचाया. सरकारें तब भी चलती रहीं. उसी तरह शराब की आमदनी को भुला दिया जाना चाहिए. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यदि शराबबंदी में कामयाब हुए तो यह देश के लिए हितकारी होगा.

- माताचरण पासी, देहरादून (उ.खं.)

*

‘शराब पर पाबंदी’ में आप की प्रतिक्रिया पढ़ी. बेशक बिहार के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री की यह पहल जायज ही मानी जाएगी. मगर इस का श्रेय उन्हें तभी मिल पाएगा जब राज्य में यह पाबंदी लग पाएगी. कारण, स्पष्ट है कि राज्य में ही नहीं, केंद्र यानी देश में भी जनहितार्थ न जाने कितने कायदेकानून राजस्व को ठोकर मार कर घोषित किए जाते हैं. मगर देश में प्रचलित नेतागीरी, अफसरगीरी, दादागीरी तथा मुफ्तखोरी यानी भ्रष्टाचारी तत्त्वों का अटूट गठबंधन सभी को धत्ता बताते हुए ऐसे जनहितैषी आदेशों को टांयटांय फिस्स कर करवा देता है. यों कानून व्यवस्था का मसला ये तत्त्व चाहे खड़ा करें या न करें, मगर मुफ्त के माल को लार टपकाती मानव प्रवृत्ति से भला कौन परिचित नहीं. इस के चलन पर अगर शासक वर्ग रोक नहीं लगा पाया, तो इस पाबंदी को कोई भी सफल नहीं कर सकता.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...