हमारी सभ्यता और संस्कृति में ठगी को विद्या और कला की मान्यता बेवजह नहीं मिली है. ठगी दुष्कर काम है जिस में आत्मविश्वास, ज्ञान और अभिनय सहित ढेरों गुणों व जानकारियां अनिवार्य होती हैं. यों ठगी सर्वव्यापी है. हर कोई किसी न किसी को ठग रहा है. व्यापारी ग्राहकों को, डाक्टर मरीजों को, बैंक उपभोक्ताओं को और नेता जनता को ठग रहे हैं.

यह मामला थोड़ा अलग है जिस में ठगों ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को ही चूना लगा डाला. यह बात खुद उन्होंने सदन में स्वीकारी कि उपराष्ट्रपति बनने के बाद वजन घटाने वाली एक दवाई का इश्तिहार उन्होंने देखा और दवा और्डर कर दी. 1 हजार रुपए लेने के बाद दवा कंपनी ने फिर हजार रुपए मांगे तो वेंकैया का माथा ठनका पर तब तक वे आम लोगों की तरह ठगे जा चुके थे.

अब उम्मीद की जानी चाहिए कि इन ठगों की बाबत कोई कठोर कानून बनेगा जो लोगों की कमजोरियों का फायदा तरहतरह के विज्ञापन दे कर खुलेआम उठाते हैं. बेहतर तो यह होगा कि मोटे लोग वजन कम करने वाले चमत्कारी विज्ञापनों के चक्कर में पड़़ने के बजाय व्यायाम और खानपान पर ध्यान दें.

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