बिहार में रेखा

बिहार के पर्यटन मंत्री जावेद अंसारी के उत्साह की दाद देनी होगी जो मशहूर फिल्म अभिनेत्री और सांसद रेखा को बिहार पर्यटन का ब्रैंड ऐंबैसेडर बनाने की पहल कर रहे हैं. इस राज्य में किसी सरकार ने पर्यटन विकास के बारे में न कभी कुछ सोचा, न किया. बीमारू राज्यों की गिनती में इस के शुमार होने की एक बड़ी वजह पर्यटन के प्रति उदासीनता भी रही है.जावेद की सोच स्वागत योग्य है जिन्होंने गुजरात से सबक सीखा कि पर्यटन को बढ़ावा देना है तो अमिताभ बच्चन जैसी किसी मशहूर सैलिब्रिटी को लाओ. वैसे उन्हें बिहार के पर्यटन स्थलों की बदहाली पर ध्यान देते हुए प्रचारप्रसार पर जोर देना चाहिए और देश के बाकी हिस्सों के लोग बिहार जाने के नाम से क्यों कतराते हैं, यह भी जावेद को सोचना चाहिए. रेखा हां करें या न, यह बाद की बात है लेकिन बिहार सरकार की प्राथमिकता पर्यटन को व्यवसाय बनाने की होनी चाहिए.

सोनिया का दम

चिंतनमनन करने के लिए अस्पताल भी बुरी जगह नहीं है जहां बिस्तर पर लेटेलेटे दलिया, सूप और जूस का सेवन करते हुए सोचने के मामले में अधीनस्थों की निर्भरता से मुक्त हुआ जा सकता है. यही तरीका कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपनाया. 3 दिन के लिए दिल्ली के एक अस्पताल में भरती रह कर वे वापस घर आईं तो जोश से भरी दिखीं.इसी जोश में उन्होंने निष्प्राण होती कांग्रेस में मार्च से नई जान फूंकने का ऐलान कर डाला. हालांकि यह दुष्कर काम कैसे होगा, यह उन्हें ही पता होगा लेकिन यह तय है कि सोनिया फिर इस शाश्वत ज्ञान की तरफ बढ़ रही हैं कि देश रसातल में जा रहा है, सांप्रदायिक ताकतें हावी हो रही हैं. ऐसे में जरूरी है कि कांग्रेस खत्म न हो. यह जोश 10 जनपथ तक ही सिमटा नजर आया, मुमकिन है कोई चमत्कारी तरीका वे अपनाएं और नए रूप में अवतरित हों.

फंदा सुनंदा का

कांग्रेसी सांसद शशि थरूर अपनी पत्नी सुनंदा की मौत के मामले में फंसते जा रहे हैं जो 17 जनवरी, 2014 को हुई थी. धन्य है हमारी पुलिस जो अब तक जांच ही कर रही है जिस से शशि परेशान हैं और बयान भी दे चुके हैं कि पुलिस उन्हें और घरेलू नौकरों को पूछताछ की आड़ में परेशान कर रही है. अब नया खुलासा यह हुआ है कि सुनंदा को धीमा जहर दे कर मारा गया था.यह हाईप्रोफाइल मौत या हत्या अब पुराने जासूसी उपन्यासों सरीखी होती जा रही है जिस में प्यार, रहस्य, रोमांच वगैरह सब हैं. दिक्कत की बात पुलिसिया तरीका है जिस में शशि थरूर शक के दायरे से बाहर नहीं हैं. जब तक मामले पर खात्मा नहीं हो जाता तब तक परेशानी तो उन्हें उठानी ही पड़ेगी क्योंकि केंद्र में अब कांग्रेस की नहीं, भाजपा की सरकार है.

दलित रत्न

बसपा प्रमुख मायावती इन दिनों बेहद बौखलाई हुई हैं. उन की बौखलाहट की कई राजनीतिक और गैरराजनीतिक वजहें हैं जिन में प्रमुख यह है कि बसपा अब कहीं गिनती में नहीं है. दलितों का मोह उस से भंग हो चला है. इस भंग मोह को जोड़ने के लिए उन्होंने भारतरत्न पर भी जातिवाद का आरोप मढ़ डाला कि सरकार एक ही जाति के लोगों को यह खिताब दे रही है. यह ज्योति बा फुले और कांशीराम को भी दिया जाना चाहिए. दलित समुदाय ने इस खुलासे पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. उलटे, सवाल यह उछलने लगे कि इन 2 महान हस्तियों ने आखिर ऐसा किया क्या था. सवाल बड़ा पेचीदा है जिस का जवाब बेहद साफ है कि देश के लिए कोई कुछ नहीं करता, देश लोगों के लिए करता है, तमाम पुरस्कार देना उन में से एक है.

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