हमारे एक फैमिली फ्रैंड हैं समीरभाई. वे गुलाम अली की गजलें बहुत अच्छी तरह गाते हैं. जब भी हम लोग उन के घर जाते हैं, 2-4 गजलें जरूर सुनते हैं. पर उन की पत्नी को गजलों का शौक नहीं है. उस दिन मैं, भाभी व भैया समीरभाई के घर गए. वे हमें देख कर खुश हो गए व जल्दी से हारमोनियम ले कर आ गए. और मेरी भाभी ने फरमाइश की, ‘चुपकेचुपके रातदिन आंसू बहाना याद है...’ सुनाइए. समीरभाई हारमोनियम पर उस की धुन निकाल कर गुनगुनाने लगे. तभी समीरभाई की बीवी, विभा बोल पड़ीं, ‘‘आप लोग क्या लेंगे?’’

समीरभाई जल्दी से बोले, ‘‘अरे भई, कुछ भी ले आओ, सब चलेगा.’’ फिर उन्होंने मुखड़ा शुरू किया ही था कि विभाजी ने पूछा, ‘‘पर ठंडा लेंगे या गरम?’’ मेरे भाई ने कहा, ‘‘मेरा गला खराब है, आप तो गरम ही ले आइए,’’ समीरभाई ने अंतरा उठाया ही था कि विभाजी ने फिर पूछा, ‘‘चाय लेंगे या कौफी?’’ मैं ने कहा,

‘‘विभाजी, आप कौफी बना लीजिए.’’ वे रसोई में गईं. समीरभाई ने चैन की सांस ली. समीरभाई आखिरी लाइन पर थे कि वे वापस आईं और कहने लगीं, ‘‘?अरे भई, अभी मैं ने कौफी की बौटल देखी, कौफी तो खत्म हो गई.’’ समीरभाई ने झुंझला कर गाना बंद कर दिया और हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘ओ मेरी अर्धांगिनी, चाय ही बना लाओ. वह तो है. सब वही पी कर तुम्हें दुआ देंगे,’’ उन की बात सुन कर हम लोग मुसकरा पड़े. विभाजी झेंप कर चाय बनाने चली गईं.  

शकीला एस हुसैन, भोपाल (म.प्र.)

*

मुझे बुखार आया था. पुराना थर्मामीटर टूट चुका था, सो तुरंत नया थर्मामीटर मंगवाया. थोड़ी देर बाद मेरी बीवी बोली, ‘‘ओहो, थर्मामीटर तो धोते समय टूट गया.’’ ‘‘कोई बात नहीं,’’ कह कर मैं ने दूसरा थर्मामीटर मंगवाया. बेगम साहिबा रोनी सूरत बना कर फिर बोलीं, ‘‘वह दूसरा भी धोते समय टूट गया.’’ मैं ने कहा, ‘‘अरे, ऐसा क्या कर रही हो कि धोते वक्त ही टूट रहा है?’’ वे बोलीं, ‘‘आप ही तो कांच के सामान को गरम पानी में धोने के बाद इस्तेमाल करने को कहते हैं.’’ उन की बात सुन कर सारा माजरा मेरी समझ में आ गया. वे थर्मामीटर को भी गरम पानी में डाल देती थीं जिस से पारा ऊपर तक पहुंच कर टूट जाता था. मुझे अपनी बीवी की नादानी पर जोर से हंसी आ गई और मुंह से निकला, वाह श्रीमतीजी.           

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