मैं बच्चों को खाना देने के बाद उन्हें सोने के लिए कह कर रसोई में काम निबटाने लगी. मेरी सास यानी माताजी ने मुझे आवाज दी, ‘‘बहू, मेरी दवा दे दो. मैं भी सोने जा रही हूं.’’ मैं दवा देने उन के कमरे में गई और रसोई की लाइट बंद करना भूल गई. माताजी को दवा दे कर मैं बच्चों के पास बैठी ही थी कि इन की आवाज आई, ‘‘अरे, लाइट तो बंद करो, वह क्या तुम्हारी अम्मा करेंगी.’’ माताजी, जोकि पास ही कमरे में सोने के लिए जा रही थीं, बोलीं, ‘‘उस की मां क्यों इतनी दूर से आ कर लाइट बंद करेंगी, मैं तुम्हारी अम्मा हूं न, अभी बंद कर देती हूं.’’ माताजी के यह कहने की देर थी कि मैं और बच्चे हंसतेहंसते लोटपोट हो गए और इन का चेहरा देखने लायक था.

शोभा सक्सेना, भिलाई (छ.ग.)

मेरे पति बहुत ही सरल व सहज प्रवृत्ति के हैं. शादी के बाद बच्चे की डिलीवरी के समय मैं मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गई. उस समय घर के सभी लोगों ने मुझे छोड़ने के लिए मेरे पति के कान भरने शुरू कर दिए कि पागल का सर्टिफिकेट बड़ी आसानी से मिल जाएगा, तलाक दे दो. लेकिन मेरे पति ने किसी की भी नहीं सुनी और मेरी मम्मी व पापा के पास मुझे छोड़ आए और स्वयं मुझे चिट्ठी के जरिए मायके में संबल देते रहे. जब मैं सामान्य हो गई तो उन्होंने मुझे अपने साथ रखा. आज हमारी शादी को 24 साल हो गए हैं और हम दोनों एक सफल वैवाहिक जीवन जी रहे हैं. अगर उस समय मेरे पति मेरा साथ न देते तो डाक्टरों की दवा के बावजूद मेरा सामान्य होना नामुमकिन था.

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