बात बहुत पुरानी है. उन दिनों दिल्ली में कारों की इतनी भरमार नहीं थी. लोग साइकिलों पर दफ्तर जाते थे. जनवरी की सर्दी थी, ऊपर से मूसलाधार बारिश.
मेरे पापा ट्यूशन पढ़ाने के लिए लोधी रोड जाते थे. मां ने सुबह ही पापा को नया स्वैटर बना कर दिया था. पापा नया स्वैटर पहन कर साइकिल से पढ़ाने गए. रास्ते में बारिश बहुत तेज हो गई थी और सर्द हवा भी चल रही थी.
पापा एक घने पेड़ के नीचे रुक गए कि बारिश कम हो तो आगे जाएं. उसी पेड़ के नीचे एक गरीब व्यक्ति, जो पतली सी शर्ट पहने हुए था, सर्दी से कंपकंपा रहा था. बहुत देर तक मेरे पापा व दूसरा व्यक्ति पेड़ की शरण में थे. मेरे दयालु पापा ने फौरन अपना नया स्वैटर उतार कर उसे दे दिया. वह स्वैटर पहन कर याचना भरी आंखों से देखता रहा और पापा ठंड में बिना स्वैटर के पढ़ाने चले गए. ऐसे थे मेरे पापा.
उषा शर्मा, गुड़गांव (हरियाणा)

बात उन दिनों की है जब मेरी नईनई शादी हुई थी. मैं अपने पति के साथ जम्मू में गृहस्थी को संभालने में व्यस्त थी. तभी मेरे पिता का शादी के बाद पहला खत आया, जिस में अन्य बातों के साथ गृहस्थी चलाने की मूल्यवान नसीहत थी. वह इस प्रकार थी, ‘‘महीने के आरंभ में सभी जरूरत की वस्तुओं की सूची बनाओ और फिर किन वस्तुओं के बगैर काम चल सकता है, यह विचार कर उन अनावश्यक वस्तुओं को सूची से हटा दो. इस तरह आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी व अनावश्यक वस्तुओं को दरकिनार कर तुम अपना बजट आय के अनुरूप बना पाओगी. गैरजरूरी वस्तुओं की खरीदारी से बच कर अपने बजट से न्याय कर पाओगी.’’
पापा की नसीहत मेरे बहुत काम आई. उन की नसीहत पर मैं ने पूरी तरह अमल किया और मैं एक कुशल गृहणी बन सकी.
मीनू त्रिपाठी

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