मेरी मां घर में खाना पकाते समय जल गई थी. उन्हें अस्पताल में एक महीना रहना पड़ा. मां 50 प्रतिशत तक जल चुकी थीं. घर में हम 2 बहनें हैं, मैं बड़ी हूं. पापा को कुछ साल पहले दिल का दौरा पड़ा था और तब से वे आंशिक रूप से अपाहिज हैं. डाक्टरों ने रात में अस्पताल में मां के साथ ठहरने को कहा था. घर में कोई लड़का न था. मेरी बहन और मैं ही मिल कर मां का इलाज और घर संभाल रहे थे. हम में से किसी के लिए भी रात में अस्पताल में अकेले ठहरना संभव न था. हम ने अपने रिश्तेदारों से मदद की काफी अपील की पर किसी ने हमारा साथ न दिया. ऐसे में मेरी बहन का एक दोस्त बढ़ कर आगे आया और उस ने हमारे बुरे समय में हमारा साथ दिया. वह सारी रात मां के वार्ड के बाहर इंतजार करता और सुबह होने पर जब उसे अंदर जाने का मौका मिलता तो मां से फोन पर हमारी बात कराता.

महिला कक्ष होने के कारण कई बार उसे बाहर ही रहना पड़ता. वह रोज घर आ कर मां के लिए खाना ले जाता और अपने हाथों से खिलाता. वह लड़का शाकाहारी था पर डाक्टर ने मां को अधिकाधिक प्रोटीन का सेवन करने को कहा था, इसलिए वह उन्हें अपने हाथों से मछली  भी खिलाता था. हम ने जब पूछा, ‘‘क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता मांसाहारी भोजन छूने में, तुम तो शाकाहारी हो.’’ तो उस ने जवाब में कहा, ‘‘मेरी मां ने कहा है कि कोई बात नहीं बेटा, बीमार आदमी की सेवा करना सब से बड़ा काम है.’’ मेरी आंखों में आंसू भर आए. मेरी मां आज स्वस्थ हैं. वे उसे अपना बेटा मानती हैं.

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