मैं अपने रिश्तेदार परिवार के साथ कार से कहीं जा रही थी. सामने से आती कार से हलकी सी टक्कर लगी. उतर कर देखा, कार में थोड़ी सी खरोंच आई थी, कोई खास नुकसान नहीं हुआ था. दूसरी कार ड्राइव करने वाले सज्जन ने कार से उतर कर हम से माफी मांगी. इतने में उन का बेटा पास की दुकान से हमारी रिश्तेदार बच्ची के लिए उपहार व चौकलेट ले आया. उन के बारबार आग्रह करने पर ही हम ने वे चीजें स्वीकार कीं. आज के माहौल में जरा सी बात पर लोग मारपीट पर उतर आते हैं, अपनी गलती नहीं मानते. ऐसे में अगर खुशनुमा पल मिल जाते हैं तो दिल खुश हो जाता है.

शशि कटियार

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मैं कोलकाता की एक प्राइवेट मोटर कंपनी की दुकान के कार्यालय में काम करता था. शाम का समय था. एक बुजुर्ग अपना टोकरा जमीन पर रख कर दोनों हाथ जोड़ कर लगे गिड़गिड़ाने कि बाबूजी, आज एक धेले का भी काम न मिला. बड़ी जोर की भूख लगी है. मुझे कुछ खाना खिला दीजिए. मैं उन को अपने साथ ले गया. सड़क के किनारे सत्तू बेचने वाले के पास जा कर बोला, ‘‘आप इन को भरपेट सत्तू खिला दीजिए. पैसे मैं दे दूंगा.’’

थोड़ी देर बाद वे बुजुर्ग भोजन कर के आए और मेरा हाथ थाम लिया, फिर बोले, ‘‘बाबूजी, आज भरपेट भोजन किया.’’ मैं ने उन से कहा, ‘‘अगर कभी ऐसा अवसर आ जाए तो मेरे पास अवश्य आइएगा.’’ उन भूखे बुजुर्ग को भोजन खिला कर मुझे जो संतुष्टि हुई, उस का बयान शब्दों में नहीं किया जा सकता.

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कैलाश राम

अपनी बिटिया को इंटरव्यू दिलाने के लिए उस के साथ मुझे दिल्ली जाना पड़ा. उस दिन गरमी अधिक थी, सो उसे इंटरव्यू के लिए छोड़ इंटरव्यू खत्म होने तक मैं समय बिताने के लिए पास के पार्क में जा कर बैठ गई. वहां घने पेड़ों की छांव में बैठ कर काफी सुकून मिल रहा था. परंतु यह देख कर बड़ा दुख हुआ कि वहां के स्थानीय बाश्ंिदे चुपचाप आते व पार्क के एक कोने में मूत्र कर चले जाते थे. स्वच्छता के प्रति लोगों की ऐसी मानसिकता ‘स्वच्छ भारत’ के नारे का मजाक उड़ाती प्रतीत हो रही थी.

सुनंदा गुप्ता

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