सरकारी खजाने से लैपटौप और स्मार्टफोन बांटना आसान है और अरबों रुपए डकारने वाले विजय माल्या को बाइज्जत विदेश भागने देना भी सरल है. ऐसे में कुछ सौहजार खाटें राहुल गांधी ने बजाय बांटने के लुटवा दीं तो कोई अजूबा नहीं हो गया है. इस बहाने कम से कम शहरी पीढ़ी खाट से परिचित तो हुई.
उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में कौन किस की खाट खड़ी करेगा, यह तो वक्त बताएगा लेकिन मनोरंजन का सिलसिला शुरू हो गया है. खाट कांड तो इस का एक उदाहरण है, अभी तो जानें क्याक्या लुटेगा और बंटेगा. ऐसे मामले सियासी पाखंडों की देन हैं. उत्तर प्रदेश आज भी पिछड़ा है जिस की जड़ में जातिवाद है. जातिवाद बना रहे, यह जरूर सभी राजनेता और दल चाहते हैं. मुमकिन है कोई दूसरा दल खाट लूटने वालों को कंबलतकिया और गद्दे देदे या लुटा दे, जिस से वे खाट पर लेट कर तय कर पाएं कि अपना अमूल्य मत किसे देना है.
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