भीमराव अंबेडकर की जयंती अब गाजेबाजे और नाचगाने के साथ इतने धूमधड़ाके से मनाई जाने लगी है कि वे जिंदा होते तो इस ड्रामेबाजी के पीछे छिपी साजिश को समझते हुए यही कहते कि जाओ मेरे दलित भाइयो, पढ़ोलिखो और सरकारी नौकरियां हासिल कर अपना जीवनस्तर सुधारो, उसी में तुम्हारी भलाई है. मुझे भगवान और देवताओं जैसे पूजने से तुम्हारा नुकसान है क्योंकि यह सब तुम नहीं कर रहे हो बल्कि उकसा कर तुम से करवाया जा रहा है.
पर दलित समुदाय अब कुछ समझने की हद पार कर चुका है. वजह, अंबेडकर पर अब आरएसएस और भाजपा ने भी दावेदारी जतानी शुरू कर दी है कि वे तो एक विचार थे. दरअसल, उन का असल मकसद अंबेडकर के मनुवाद विरोधी तेवरों को विसर्जित करना है और जाहिर है इस के लिए उन्हें पहले अंबेडकर को अपनाने का स्वांग तो करना ही पड़ेगा.