सहारा ने जिस पैरा बैंकिंग के जरिए कारोबार की दुनिया में सफलता की बुलंदियों को छुआ, आज वह हवाई किला साबित हो रही है. सेबी ने जिस तरह सहारा के झूठे दावों की पोल खोली है उस से सहारा समूह की कार्यशैली पर सवालिया निशान तो लग ही गया है. पढि़ए शैलेंद्र सिंह का लेख.
‘बस, बहुत हो गया,’ यह किसी टीवी सीरियल के डेली सोप या फिर फिल्म का डायलौग नहीं है बल्कि सहारा ग्रुप औफ कंपनीज का सिक्योरिटी ऐंड ऐक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया यानी सेबी को जवाब है. देखा जाए तो सहारा और सेबी के बीच चल रहे शह और मात के खेल में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका निर्णायक की है. सेबी शह और मात के इस खेल में सहारा को पछाड़ने में लगा है तो सहारा अपने साधनों का इस्तेमाल कर सेबी को झूठा और खुद को सच्चा साबित करने में लगा है.
सेबी जब सहारा पर कोई कार्यवाही करता है तो अगले दिन अखबारों में एक पैराग्राफ की खबर छपती है जिस से तिलमिला कर सहारा उस के अगले दिन अखबारों को पूरे पेज का विज्ञापन दे कर सेबी को झूठा साबित करने का प्रयास करता है.
17 मार्च, 2013, दिन रविवार को प्रकाशित विज्ञापन ‘बस, बहुत हो गया’ इस कड़ी का अंग है. इस विज्ञापन में सहारा ने सेबी को अप्रत्यक्ष रूप से धमकाने का काम किया है जो एक तरह से सुप्रीम कोर्ट की अवमानना सा दिखता है.
विज्ञापन में सहारा के प्रबंध कार्यकर्ता सुब्रत राय सहारा कहते हैं, ‘हमारा किसी भी तरह का दोष न होते हुए भी सेबी जानबूझ कर गलत आदेश पारित कर के हमें बदनाम कर रहा है जिस से पिछले 34 साल में मेहनत से अर्जित की गई छवि को नुकसान हो रहा है.’ यही नहीं, वे सेबी को टीवी चैनल पर खुली बहस करने के लिए चुनौती भी देते हैं.
वे यह भी कहते हैं कि सेबी बदले की भावना से काम कर रही है. सेबी को जवाब देने के लिए सहारा ने जिस तरह विज्ञापन ‘बस, बहुत हो गया’ का सहारा लिया है वह किसी धमकी से कम नहीं लगता. जब अदालत में इतने गंभीर लैवल पर मामला चल रहा हो तो ऐसे काम फैसले को प्रभावित करने की श्रेणी में आते हैं. बेहतर होता कि सहारा ये बातें अदालत में कहता जहां उस की बात को पूरी गंभीरता के साथ सुना जाता.
क्यों तिलमिलाया सहारा
सेबी ने निवेशकों का पैसा लौटाने में आनाकानी करने पर सहारा समूह के खिलाफ कड़े कदम उठाने की इजाजत देने के लिए 15 मार्च, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के सामने एक प्रार्थनापत्र दिया था. इस में सेबी ने सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय की गिरफ्तारी की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिका दाखिल की थी.
जस्टिस के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने अप्रैल के पहले सप्ताह में इस की सुनवाई करने की तारीख तय कर दी. इस याचिका में पहली बार सेबी ने कहा कि अदालत सुब्रत राय के देश छोड़ने पर रोक लगाए. सुप्रीम कोर्ट से कहा गया कि वह सुब्रत राय को अपना पासपोर्ट अदालत में जमा करने का आदेश दे. सुब्रत राय के साथ ही साथ सहारा समूह के 2 और निर्देशकों, अशोक राय चौधरी और रवि शंकर दुबे के खिलाफ भी गैर जमानती वारंट जारी करने का अनुरोध किया गया था.
दरअसल, यह पूरा मामला निवेशकों के 24 हजार करोड़ रुपए लौटाने से जुड़ा हुआ है. खुद सुप्रीम कोर्ट सहारा समूह की 2 कंपनियों, सहारा इंडिया रियल स्टेट कौर्पोरेशन और सहारा हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन द्वारा गलत तरीके से जुटाए गए 24 हजार करोड़ रुपए निवेशकों को लौटाने का आदेश दे चुका है. इस के बाद भी सहारा इस रकम को लौटाने में आनाकानी कर रहा है.
सेबी का कहना है कि सहारा सही जानकारी न दे कर उसे और अदालत दोनों को गुमराह कर रहा है. इस से बचने के लिए सेबी पहले ही सहारा इंडिया रियल स्टेट कौर्पोरेशन, सहारा हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन और सुब्रत राय सहित 3 दूसरे निदेशकों के चलअचल खाते और संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर चुका है.
34 सालों में पहली बार किसी सरकारी विभाग ने सहारा समूह के खिलाफ इतने बड़े लैवल पर पुख्ता प्रमाणों के साथ कार्यवाही की है. सेबी की कार्यवाही से अदालत भी सहमत नजर आती है. इस का प्रमाण तब मिला जब सहारा ने सुप्रीम कोर्ट से निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए समय देने की मांग की. उस समय चीफ जस्टिस अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सहारा समूह को फटकार लगाते हुए कहा कि उस ने पहले दिए गए आदेशों का पालन नहीं किया है. ऐसे में सहारा समूह को लग रहा है कि कहीं अगर सेबी की बात मानते हुए अदालत ने सुब्रत राय और दूसरे निदेशकों के देश छोड़ कर न जाने का आदेश दे दिया और उन का पासपोर्ट जमा कर लिया तो वह सहारा की सब से बड़ी हार होगी. ऐसे में सहारा समूह के खिलाफ अदालत से बाहर धमकी देने जैसे विज्ञापन ‘बस, बहुत हो गया’ छपवाया गया है.
अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अगुआई में बनी 3 सदस्यों की खंडपीठ ने सहारा को 3 करोड़ निवेशकों को 15 फीसदी ब्याज के साथ लगभग 24 हजार करोड़ रुपए वापस करने का आदेश दिया था. सहारा ने इस आदेश पर पुनर्विचार के लिए एक याचिका दाखिल की थी. 9 जनवरी, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के एस बालाकृष्णन और जगदीश सिंह खेहर की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया था. ऐसे में निवेशक बेचैन हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि उन का जमा पैसा कैसे वापस मिलेगा.
नाम बदल कर कराया निवेश
कोलकाता में कंपनी और कारोबारी जगत के जानकार श्रीकुमार बनर्जी का कहना है कि आम लोगों से पैसे उगाहते रहने के लिए मार्च 2008 में सहारा इंडिया ने अपनी एक अन्य कंपनी सहारा इंडिया ‘सी’ जंक्शन का नाम बदल कर सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पाेरेशन कर दिया. कंपनी ने डिबैंचर के माध्यम से रुपए उगाहने का फैसला किया. इस के बाद सितंबर 2009 में सहारा इंडिया हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन ने भी डिबैंचर के रूप में निवेश कराने का फैसला किया.
कंपनी की ओर से कहा गया कि यह रकम वह रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करेगी. इस के अलावा सहारा क्रैडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी के माध्यम से भी सहारा ने निवेश कराया. सहारा क्रैडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी एक तरह की कोऔपरेटिव संस्था थी. इस पर रिजर्व बैंक औफ इंडिया का नियंत्रण नहीं था. ऐसे में सहारा पर यह आरोप लगा कि वह किसी चिटफंड कंपनी की ही तरह लोगों से पैसा वसूल रहा था.
सहारा समूह ने लोगों को शुद्ध चीजें उपलब्ध कराने के नाम पर सहारा क्यू शौप की शुरुआत की. सहारा क्यू शौप डायरैक्ट सेलिंग प्रोजैक्ट है. इस को जुलाई 2012 में सुब्रत राय और स्वप्ना राय ने 5 लाख रुपए के मूलधन से शुरू किया था. तय हुआ था कि कंपनी की आधिकारिक इक्विटी मूलधन 10 लाख करोड़ रुपए होगी. निवेशकों से भी 12,250 रुपए की रकम अग्रिम ली गई थी. इस रकम के एवज में कंपनी ने निवेशकों को यह सहूलियत दी कि निवेशक इस रकम के बराबर मूल्य की सामग्री क्यू शौप के यूनिक प्रोडक्ट रेंज से खरीद सकते हैं. साल 2012 में आधिकारिक इक्विटी मूलधन 5 लाख से बढ़ कर अब 2 हजार करोड़ रुपए का हो गया.
क्यू शौप के लिए वसूल की गई रकम को सहारा ने परोक्ष रूप से रियल एस्टेट में खर्च किया. 4 अक्तूबर, 2012 को कंपनी ने 2 हजार करोड़ रुपए का शेयर ऐंबी वैली सिटी डैवलपर्स को दिया. ऐंबी वैली सिटी डैवलपर्स ऐंबी वैली सिटी की ही अलग कंपनी है. सहारा इंडिया कौमर्शियल कौर्पाेरेशन ऐंबी वैली सिटी का एक बड़ा शेयरधारक है. इस कंपनी में सहारा इंडिया कौर्पाेरेशन के 40 प्रतिशत, स्वप्ना राय के 26 प्रतिशत, ऐंबी वैली लिमिटेड के 35 प्रतिशत शेयर हैं.
इस के अलावा ऐंबी वैली लिमिटेड के प्रोमोटर शेयरधारक के रूप में सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पोरेशन के 40 प्रतिशत, सहारा इंडिया हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन के 3 प्रतिशत और सहारा इंडिया कौमर्शियल कौर्पोरेशन के 25 प्रतिशत शेयर हैं. कुल मिला कर यह पूरा मामला बहुत जटिल है. इस को समझ पाना बड़े से बड़े निवेशक के लिए सरल नहीं है. कारोबार जगत के लोग मानते हैं कि जटिलता रिजर्व बैंक, सेबी और निवेशकों की आंख में धूल झोंकने के लिए है.
सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पोरेशन और सहारा इंडिया हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन के डिबैंचर के निवेशकों का पैसा चुकाने के लिए सहारा ग्रुप की ओर से सुप्रीम कोर्ट में ऐंबी वैली लिमिटेड की 3,500 एकड़ जमीन को सिक्योरिटी के रूप में रखा गया है. सेबी को गोलगोल घुमाने के लिए सहारा ने विभिन्न कंपनियों में पैसों को गोलगोल घुमाया है. साथ में आम निवेशकों का पैसा सहारा ग्रुप ने रियल एस्टेट में निवेश किया. ऐंबी वैली को सहारा ग्रुप और ऐंबी वैली लिमिटेड ने मिल कर मुंबई में लोनावला के पास बसाया है. 10,600 एकड़ जमीन पर ऐंबी वैली नाम से बसा यह शहर एक बहुत ही आधुनिक सिटी के रूप में बसाया गया. इस की एक शाखा मौरीशस में बताई जाती है. कंपनी की एक शाखा ने न्यूयार्क में प्लाजा होटल और लंदन में ग्रौसवेनर होटल भी खरीदा है.
आमनेसामने सेबी और सहारा
सहारा ग्रुप को निवेशकों का कितना पैसा चुकाना है, इस को ले कर सेबी का आंकड़ा 26 हजार करोड़ रुपए के आसपास का है. इस के विपरीत सहारा का कहना है कि उस ने 22 हजार करोड़ रुपए निवेशकों को लौटा दिए हैं. उसे अब केवल 3,500 करोड़ रुपए ही लौटाने हैं.
सहारा कंपनी का मानना है कि वह सेबी के अधीन आती ही नहीं है. इस आधार पर उस ने सेबी को कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया था. सहारा ग्रुप का कहना है कि उस की कंपनी शेयर बाजार में पंजीकृत नहीं है, इसलिए वह सेबी के अधीन नहीं आती है. दबाव में आने के बाद सहारा ने निवेशकों से जुड़े तमाम तथ्य सीडी में डाल कर सेबी को दिए. यह सीडी पासवर्ड प्रोटैक्टेड थी, जिस के चलते सेबी उन का विश्लेषण करने में नाकाम रही. सीडी सेबी के किसी काम न आ सकी. सेबी की आपत्ति पर सहारा ने निवेशकों से जुड़े दस्तावेज ट्रकों में लाद कर सेबी को भेज दिए. इन का अध्ययन करना सेबी के लिए आसान नहीं था.
सहारा के हजारों निवेशकों में से सेबी को केवल 68 प्रामाणिक निवेशक मिले हैं. सहारा का कहना है कि जिन छोटेबड़े निवेशकों को भुगतान किया जा चुका है, वे सेबी से संपर्क क्यों करेंगे. सेबी का आरोप है कि सहारा ने अपने निवेशकों के सही पते नहीं लिखे हैं. सहारा कहता है कि हमारे लाखों निवेशक चाय के ढाबे चलाने जैसे छोटेछोटे रोजगार करते हैं. वे सड़क किनारे बैठते हैं. उन के पते उसी तरह के हो सकते हैं. इसी तरह गांव के लोगों के भी न मकान नंबर होते हैं और न ही उन का कोई महल्ला होता है. बड़ी संख्या में ऐसे निवेशक हैं जिन के अपने मकान नहीं हैं, इसलिए वे समयसमय पर अपने पते बदलते रहते हैं.
सहारा का तर्क है कि हमारे एजेंट उन को जानते हैं, इसलिए जरूरत पड़ने पर उन लोगों तक पहुंच जाते हैं. ‘बस, बहुत हो गया’ विज्ञापन में सहारा ने सेबी को चुनौती देते हुए कहा है कि वह हमारे एक भी निवेशक को फर्जी पा ले या उसे फर्जी साबित करे.
सेबी के आरोपों के जवाब में सहारा दावा करता रहा है कि उस ने निवेशकों के पैसे वापस कर दिए हैं. सहारा के इस तर्क का जवाब देने के लिए असली निवेशकों ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है. दिल्ली के रहने वाले रोशन लाल मौर्या ने दूसरे निवेशकों के साथ मिल कर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की और अदालत से गुहार लगाई कि उन के पैसे ब्याज सहित देने के लिए सहारा को आदेश दिया जाए.
कंपनी रजिस्ट्रार ने किए सवाल
सहारा अपने निवेशकों का पैसा लौटाने के बजाय उसे दूसरी योजनाओं में बिना निवेशक की जानकारी के निवेश कर देता था. कंपनी रजिस्ट्रार कानपुर, उत्तर प्रदेश ने इस की जांच शुरू कर दी है. सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पोरेशन लिमिटेड के खिलाफ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर, समाजसेवी नूतन ठाकुर और आशीष वर्मा ने शिकायत दर्ज कराई थी. सेबी के जाल से बचने के लिए सहारा ने क्यू शौप को उपभोक्ता सामग्री बेचने वाली नैटवर्क कंपनी बताया था.
असल में सहारा, क्यू शौप के जरिए भी पैसे एकत्र कर रहा था. नूतन ठाकुर और अमिताभ ठाकुर ने सहारा क्यू शौप के 1-1 हजार रुपए के 2 बौंड खरीदे. बौंड खरीदते समय इन लोगों को बताया गया कि 8 साल के बाद 1 हजार रुपए के बदले 2,335 रुपए देंगे. इस से पता चलता है कि ऊपर से सहारा जिस योजना को उपभोक्ता सामग्री वाली चेन बताते रहे, असल में वह भी निवेश योजना का अंग थी.
एक दूसरे शिकायतकर्ता आशीष के पास 58 हजार रुपए के 4 ऐडोबे बौंड थे. उस के मिलने वाले 2 लाख 32 हजार रुपए सहारा कंपनी पहले सहारा क्यू शौप में निवेश कराना चाहती थी. कंपनी रजिस्ट्रार में शिकायत के बाद सहारा ने पूरा पैसा वापस कर दिया. कंपनी रजिस्ट्रार कानपुर ने शिकायत के आधार पर सहारा रियल एस्टेट से 5 सवाल पूछे हैं. ये सवाल हैं : क्या सहारा रियल एस्टेट बौंड को सहारा क्यू शौप में परिवर्तित करने हेतु धारा 297 के तहत कंपनी अधिनियम के तहत कोई अनुमति ली गई है? सहारा रियल एस्टेट के बौंड में पैसा लौटाने की जगह पर सहारा क्यू शौप में सामग्री खरीदने की कोई शर्त थी? क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश में पैसा लगाने की जगह पर बौंड परिवर्तन की व्यवस्था है? अब तक कैश और शेयरों के माध्यम से परिवर्तित किए गए निवेश का प्रतिशत क्या है? क्या सहारा रियल एस्टेट के ब्रोशर में सहारा क्यू शौप से सामान खरीदने की बात कही गई थी?
सहारा पर सेबी की शिकायत से पहले भी आरोप लगते रहे हैं. सहारा की ‘द प्राइज सर्कुलेशन ऐंड कलैक्शन मनी गोल्डन स्कीम’ भी सवालों के घेरे में रहती है. 1995-96 में शुरू की गई इस स्कीम के जरिए पैसा हड़पने का आरोप लगा था. पैसा जमा करने वालों की याचिका पर बदायूं के न्यायिक मजिस्ट्रेट बिसौली शिवकुमार ने सहारा के कुछ लोगों के खिलाफ फरवरी में गैर जमानती वारंट जारी किया है. मजिस्ट्रेट की सुनवाई में ये लोग उपस्थित नहीं हो रहे थे, इस कारण अदालत को यह कदम उठाना पड़ा है.वर्ष 1986 में सहारा ने ‘गोल्डन की’ नाम से एक इनामी योजना शुरू की थी. इनाम बांट कर पैसा दोगुना करने का लालच दे कर लोगों से इस योजना में पैसा लगवाया गया. इस के खिलाफ सुब्रत राय, जयव्रत राय और ओ पी श्रीवास्तव के खिलाफ अलीगंज थाने में मुकदमा लिखा गया था.
अपराध संख्या 332/93 पर दर्ज इस मुकदमे की जांच का काम सीबीसी आईडी ने किया था. 2003 में इस मामले में चार्जशीट भी सौंप दी गई थी. इस के बाद शुरू हुआ मामले से बच निकलने का काम. मुकदमा वापस लेने का प्रयास शुरू हो गया. 18 अप्रैल, 2007 को न्यायिक मजिस्ट्रेट बिजेंद्र त्रिपाठी ने मुलायम सरकार के प्रार्थनापत्र 3 मई, 2006 को अस्वीकार कर दिया था. 31 जुलाई, 2009 को यूपी के न्याय विभाग ने भी मामला वापस लेने की अर्जी को खारिज कर दिया था. 3 नवंबर, 2009 को सत्र न्यायाधीश ने निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया जिस में मामले को वापस लेने से मना कर दिया गया था.
20 नवंबर, 2009 को इस की शिकायत भारत के मुख्य न्यायाधीश से की गई.