हमारी बालकनी में पुराने सामान पड़े होने की वजह से कबूतरों ने डेरा डाल लिया था. आएदिन कबूतरी अंडे देती रहती. हम ने सारा सामान हटवा कर अच्छी तरह से साफसफाई कर दी. अब कबूतर आते भी तो तुरंत भाग जाते थे या हम में से भी कोई उन्हें भगा दिया करता था. एक दिन मेरी छोटी ननद आई हुई थी. इधरउधर की बातें होने के बाद उस ने पूछा, ‘‘भाभी, अभी भी कबूतर बालकनी में अंडे देते हैं क्या?’’ मैं कुछ कहती, इस से पहले ही मेरा बड़ा बेटा अंशुल तपाक से बोल उठा, ‘‘नहीं बूआजी, अब कबूतर अंडे नहीं देते. अब तो आते हैं, बस, मीटिंग कर के तुरंत चले जाते हैं.’’ उस का ऐसा उत्तर सुन कर मेरी ननद के साथ हम सब भी हंसने लगे.

अंजु सिंगड़ोदिया

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मेरी आंटी अपनेआप को बहुत होशियार समझती हैं. बातचीत में वे अंगरेजी के शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से करती हैं भले ही उन शब्दों की जरूरत भी न हो. अंकलजी के मित्र का हार्टफेल होने से मृत्यु का समाचार पाते ही अंकलआंटी उन के वहां दुख प्रकट करने गए. पहले तो आंटी ने मृतक की पत्नी को सांत्वना दी, फिर पूछा, ‘‘भाईसाहब का हार्ट पहली बार फेल हुआ है या इस से पहले भी कभी हुआ था?’’ अंकलजी ने आंखे तरेर कर उन्हें चुप रहने का संकेत किया. उस दुख के माहौल में उन की बात सुन कर लोग? इधरउधर मुंह छिपा कर अपनी हंसी रोकने का प्रयास कर रहे थे.

प्रोमिला भाटिया

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मेरे मौसाजी शाम को औफिस से घर लौटे. मौसीजी किचन में थीं तो वे सीधे वहीं गए. हैलमैट एक तरफ रख कर उन्होंने मौसीजी से पकौड़े बनाने को कहा. मौसीजी ने बताया कि बेसन खत्म हो गया है. पहले जा कर बेसन ले आएं. इस बात पर मौसाजी गुस्सा हो गए, ‘‘अभीअभी थकाहारा लौट कर आया हूं. बेसन लेने नहीं जाऊंगा.’’ तब मौसीजी ने भी कह दिया, ‘‘आप की मरजी.’’ मौसाजी बड़बड़ाते हुए बाहर गए और 2 मिनट बाद वापस लौट आए. उन के एक हाथ में फ्राइंगपैन था. दरअसल, वे हैलमैट के बजाय फ्राइंगपैन उठा कर चल दिए थे. यह देख कर मौसीजी हंसी से लोटपोट होती हुई बोलीं, ‘‘चलो, हैलमैट न पहनने पर जब पुलिस डंडे चलाती, तो यह आप का सिर बचाने के काम आता.’’ मौसाजी भी हंस पड़े कि यह भी खूब रही.

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