मकर संक्रांति पर हम अपने छोटे भाई के यहां अहमदाबाद गए हुए थे. 15 साल के बाद वह वापस आया हुआ था. अब तक भाईभाभी और उन के 2 बच्चे अमेरिका में थे. चायनाश्ते के बाद हम सब फ्लैट की छत पर पतंग उड़ाने पहुंच गए. काफी पतंग उड़ रही थीं. भाई की पतंग थोड़ी सी फट गई. उस पर गोंद पट्टी चिपकानी थी. गोंद पट्टी काटने के लिए उसे कैंची चाहिए थी. उस ने अपने 8 साल के बेटे से भाभी के पास से कैंची लाने को कहा. पर भाभी ने उसे यह कह कर वापस भेजा कि वे थोड़ी ही देर में ऊपर आ रही हैं, कैंची साथ लाएंगी.

उन के फ्लैट में 2 छत हैं और बीच में सीढि़यां. वे जब ऊपर आईं तो हमें बड़ी शान से बताया कि आते समय उन्होंने बाजू वाली छत से गुजरती कई पतंगों को काट डाला. हमें यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि उन के हाथ में न पतंग थी न डोर. फिर उन्होंने दूसरों की पतंग काटी तो काटी कैसे.

हमारे पूछने पर उन्होंने कैंची हमारी आंखों के सामने नचाते हुए कहा, ‘‘इस से.’’ जब हम सब के ध्यान में यह बात आई कि वे समझ रही थीं कि इस तरह ही पतंग काटी जाती है और भाई ने इसी के लिए कैंची मंगवाई है तो हम सब इतनी जोर से हंस पड़े कि वे देखती रहीं. हम ने उन्हें समझाया, ‘‘भाभी, पतंग काटने का मतलब है, 2 पतंगों के पेच होते हैं और जब एक डोर से दूसरी पतंग की डोर काटी जाती है तो इसे पतंग को काटना कहते हैं, न कि कैंची से.’’

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