हमारे पड़ोसी के 9 व 11 वर्ष के दोनों बच्चे बहुत उद्दंडी हैं. हर बार दीवाली पर अपनी शान दिखाने के लिए वे बच्चों को 2-3 हजार रुपए के पटाखे दिलाते हैं. बच्चों सहित वे रात के 12 बजे तक पटाखे छुड़ाते रहते हैं. खूब धूमधड़ाका होता है जिस से हम सभी व हमारे 2 पालतू जानवरों को काफी परेशानी होती है.
इस वर्ष दीवाली से पूर्व मैं ने उन से अनुरोध किया था कि वे पटाखे कम ही छुड़ाएं. इस पर उन्होंने मेरा यह कह कर मजाक उड़ाया था कि मैं पटाखों पर पैसे खर्च नहीं करता हूं तो उन्हें तो खर्च करने दूं. आखिर दीवाली पर्व का औचित्य तब तक पूरा नहीं होता है जब तक बड़ेबड़े बम जैसे पटाखे न छुड़ाए जाएं.
मैं ने उन्हें समझाने की कोशिश की, कि दीवाली रोशनी, सौहार्द का त्योहार है. जरूरी तो नहीं कि पटाखों से शोरशराबा किया जाए. लेकिन वे नहीं माने.
दीवाली से 2 दिनों पहले उन का 9 वर्षीय बेटा पटाखे छुड़ा रहा था जिस से उस की आंखों में बारूद के कुछ कण चले गए और आंखों में जलन होने लगी.
बच्चे को अस्पताल में दिखाया गया. दीवाली वाले दिन उन का वह बेटा बिस्तर पर ही रहा.
प्रदीप गुप्ता
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मैं छठ पर्व मनाने के लिए अपने पैतृक घर गई हुई थी. मेरा घर बिहार की राजधानी पटना से करीब 30 किलोमीटर एक ऐसे गांव में है जहां गंगा नदी की पतली सी धारा प्रवाहित होती है. इसी धारा के कछार पर आ कर लोग छठी मैया और सूर्य देवता को अर्घ्य देते हैं. मैं भी इस पर्व में प्रति वर्ष शामिल होती हूं. मैं गांव पहुंची तो मेरी भांजी अपने 3 वर्षीय पुत्र को ले कर पहले से वहां मौजूद थी.