4 माह पूर्व दिल्ली में एक मशहूर कंपनी में मेरी सौफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर नियुक्ति हुई. मैं नौकरी जौइन करने गई तो मेरे साथ मेरे मम्मीडैडी भी गए. वहां पहुंच कर मैं अपनी सहेली के फ्लैट पर रुकी.

10 दिनों बाद हम सभी का विचार मौल घूमने का बना. मौल घूमने के बाद आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी की. इस दौरान डैडी अलग खड़े रहे. पता नहीं डैडी को अचानक कब चक्कर आया और वे गिर पड़े, हम लोग खरीदारी में मशगूल थे.

कोई गिर गया, कोई गिर गया की आवाज सुन कर वहां भीड़ लगनी शुरू हो गई थी. वहां जा कर मेरी निगाह डैडी पर पड़ी. मैं घबरा गई. तभी एक सज्जन भीड़ को हटा कर वहां पहुंचे. बेहोशी मिटाने

के लिए तुरंत पानी के छींटे मारे. तकरीबन 10 मिनट बाद डैडी ने आंखें खोलीं. मैं उन सज्जन को पहचान गई. वे हमारे महल्ले के डाक्टर चांडकजी थे. उन्होंने भी मुझे पहचान लिया और बोले, ‘‘बेटी, चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा.’’

होश आने पर उन्होंने मेरे डैडी से पूछा. डैडी ने कहा, ‘‘मैं खुद नहीं जानता कि कब गिर पड़ा, पर अब ठीक हूं.’’ हम चांडकजी की मदद को ताउम्र नहीं भूल पाएंगे. दीपिका श्रीवास्तव

मैंदादाजी के साथ ट्रेन से गेहूं ले कर आ रहा था. बनारस स्टेशन पर हमें उतरना था. 4 बोरे होने के कारण मैं ने 4 कुली किए. एक कुली दादाजी के साथ स्टेशन के बाहर गया, बाकी 3 कुलियों की जिम्मेदारी मुझ पर थी.

मैं ने उन तीनों को एकसाथ चलने की हिदायत देते हुए खुद भी उन के साथसाथ चलने लगा. लेकिन एक बोरे का वजन अत्यधिक होने के कारण एक कुली बोरा रख कर कहीं चला गया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...