मेरा नाती 3 साल का हुआ तो उसे नर्सरी स्कूल में दाखिला दिलाया गया. वह स्कूल की वैन से आनेजाने लगा. एक दिन हमारे यहां कुछ मेहमान आए. वह उन्हें स्कूल के बारे में बताने लगा. आखिर में उस ने बताया कि जब हम खाना खा लेते हैं तो मैडम मुझे सुला देती हैं.

‘‘अच्छा, फिर क्या सो जाते हो तुम?’’

‘‘हां, मैं सो जाता हूं. टेबल पर सिर रख कर.’’ उस ने आगे कहा कि फिर मैडम मुझ से कहती हैं कि ‘वैंकेट, गैट रेडी.’ तो मैं उठ जाता हूं. मेहमानों ने कहा, ‘‘लेकिन तुम्हारा नाम तो विहान है, फिर मैडम तुम्हें वैंकेट क्यों कहती हैं?’’

‘‘पता नहीं,’’ वह मासूमियत से बोला. हम लोग भी सोच में पड़ गए इसलिए दूसरे दिन मैं स्कूल गई. उस की मैडम से पूछा कि आप इस को वैंकेट क्यों कहती हैं? इस का नाम तो विहान है. पहले तो वे समझी नहीं, फिर जब उन्हें पूरा किस्सा बताया तो वे बहुत हंसीं, बोलीं, ‘‘हम इसे वैंकेट नहीं कहते, हम तो कहते हैं कि वैन किड गैट रेडी.’’ अब मुझे सारी बात समझ में आई. मैं ही नहीं, घर में हर कोई यह जान कर बहुत हंसा.

अनीता सक्सेना, भोपाल (म.प्र.)

*

एक दिन मैं घर पहुंचा था तो मेरी भतीजी, जिस की आयु 5 वर्ष है, मेरे पास आ कर खड़ी हो गई. मैं ने कहा, ‘‘बेटे, आप सुस्त क्यों हो?’’ तो वह बोली, ‘‘चाचू, मम्मी खुद तो आसानआसान काम करती हैं, जैसे रोटी पकाना, कपड़े धोना और मेरे लिए मुश्किल काम छोड़ देती हैं.’’ मैं ने पूछा, ‘‘बेटे, वे आप से क्या काम करवाती हैं?’’ वह बोली, ‘‘कभी तो हिसाब के सवाल करने को कहती हैं, कभी अंगरेजी पढ़ने को, कभी पाठ याद करने को. अब मैं कौनकौन सा काम करूं.’’ उस की बात सुन कर हम सारे हंस पड़े कि पढ़ाई मुश्किल है और कपड़े धोना आसान.

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