सिद्धू की घुटन

घुटन बहुत बुरी चीज है, जब होती है तो आदमी सच बोलने लगता है. ऐसा ही कुछ नवजोत सिंह सिद्धू के साथ हो रहा है. वे भारतीय जनता पार्टी और राजनीति में घुटन महसूस कर रहे हैं. उन पर भ्रष्ट लोगों का साथ देने का दबाव डाला जा रहा है और वे सिस्टम से भाग नहीं रहे हैं बल्कि उन्हें सिस्टम से दूर रखा जा रहा है.

यह संक्षिप्त रामायण भाजपा विधायक नवजोत कौर सिद्धू की प्रस्तुति है जो हकीकत में दोहरा भाजपाई चरित्र उजागर करती है पर इन दिनों प्रधानमंत्री पद को ले कर भगवा खेमे में इतनी भागमभाग मची है कि सिद्धू दंपती की इस भड़ास को किसी ने भाव नहीं दिया. पूर्व क्रिकेटर, ऐंकर और सांसद नवजोत सिंह सिद्धू मौका भुनाने की खूबी के कारण सफल रहे वरना ऐसी कोई खास बात उन में है नहीं जिस के चलते वे घुटन और सुकून के द्वंद्व में फंसते.

उद्धव का हठ

संख्या बल के मद्देनजर एक सांसदधारी पार्टी भी गठबंधनीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण होती है, फिर शिवसेना तो  लगभग दर्जनभर सांसद रखने की हैसियत रखती है. लिहाजा, उद्धव ठाकरे का यह कहना माने रखता है कि पहले भाजपा नरेंद्र मोदी पर अपना रुख साफ करे फिर उन की पार्टी कुछ तय करेगी.

यों तय करने को कुछ खास है भी नहीं. वजह, बाल ठाकरे ने अपने जीतेजी सुषमा स्वराज को पीएम पद के लिए सब से काबिल बताया था. भाजपा की दिक्कत यह है कि उद्धव हिंदी फिल्मों के ठाकुरों की तरह अपने पिता की बात पर अड़े हैं. नरेंद्र मोदी के चक्कर में भाजपा एकएक कर जिस तरह सहयोगी खोने को तत्पर है उसे देख लगता है लोकसभा चुनाव आतेआते वह पीएम पद पर दावा करने लायक ही नहीं बचेगी.

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