सौ करोड़ की डायरी
मोबाइल और इंटरनैट जैसे गैजेट्स से डायरी की महत्ता और उपयोगिता पर खास फर्क नहीं पड़ा है. एक चर्चित डायरी बिड़ला समूह की है जो सीबीआई ने 18 अक्तूबर को जब्त की थी. उक्त डायरी में कोल ब्लौक आवंटन घोटाले में किए गए भ्रष्टाचार के अंश दर्ज हैं.
कानूनी खानापूर्तियों से फारिग हुई यह डायरी अब सुप्रीम कोर्ट में है जिस में दर्ज है कि बिड़ला समूह की कंपनियों ने पिछले 10 सालों के दौरान 1,000 से भी ज्यादा भुगतान विभिन्न दलों और नेताओं को किया. बिड़ला समूह की दानवीरता का ही बखान इस डायरी में है जिसे संभाल कर किसी छापे के लिए ही रखा गया था ताकि जरूरत पड़ने पर कहा जा सके कि हम भ्रष्टाचार करते नहीं, भ्रष्टाचार करने के लिए हमें मजबूर किया जाता है. सारा ब्योरा जाने क्यों सीडी में नहीं रखा गया जो डायरी की बिक्री गिरने की बड़ी वजह है.


उद्धव का दर्द
पिता का छोड़ा साम्राज्य संभालने में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को पसीने आ रहे हैं. बीते दिनों पार्टी के कुछ बगावतियों पर वे कड़े हुए पर तेवर बाल ठाकरे सरीखे नहीं थे. हर कोई जानता है कि शिवसेना के संविधान में नरमी वाला कौलम है ही नहीं, यह पार्टी सख्ती से ही चलती रही है.
उद्धव की दिक्कत यह है कि जब वे दहाड़ते हैं तो रिरियाते से लगते हैं, लिहाजा, शिवसैनिकों के दिलोदिमाग में ठाकरे खानदान का पसरा खौफ कम हो रहा है जो उस के टूटने की वजह भी बन सकता है. अपनी कमजोरी से नजात पाने के लिए उद्धव दूसरी गलती नरेंद्र मोदी की तरफ झुकने की कर रहे हैं. उन के नरेंद्र विरोधी तेवर सभी को पसंद आए थे जो अब बदल रहे हैं. वे खुद जा कर मोदी से मिले तो लोगों को सहज ही वह जमाना याद आया कि बाल ठाकरे अपने घर ‘मातोश्री’ से बाहर नहीं निकलते थे, जिस को जरूरत पड़ती थी वह उन से आ कर ही मिलता था.


राजनाथ का मोदी प्रेम
4 राज्यों में अपनी पार्टी के शानदार प्रदर्शन पर बोलने के लिए माइक उठाया तो भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इस का श्रेय सीधेसीधे नरेंद्र मोदी को देते हुए यह जताने की कोशिश की कि मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने का उन का फैसला या जिद गलत नहीं थी. इस बात से रातदिन हाड़तोड़ मेहनत करने वाले कार्यकर्ता मायूस हैं, साथ ही, चिंतित दूसरे बड़े नेता भी हैं कि अच्छे और शुभ कार्यों का श्रेय मोदी को ही दिया जा रहा है जबकि उन की मेहनतों का जिक्र ही नहीं हो रहा.
राजनाथ का मोदी प्रेम अब भाजपा के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है, जिस के नतीजे लोकसभा के भावी चुनाव में उलटे भी निकल सकते हैं.


पेरोल का रोल
पेरोल कैद से आजादी नहीं है बल्कि कैदियों के लिए एक ऐसी सहूलियत है जिस में बंदिशों की भरमार है. आमतौर पर पेरोल हासिल करना टेढ़ी खीर है जिसे संजय दत्त ने सीधी खीर साबित कर खासा बवाल खड़ा कर दिया. अपनी पत्नी मान्यता की बीमारी का बहाना ले कर उन्होंने पेरोल हासिल किया जबकि वे फिल्मी पार्टियों में शिरकत कर रही थीं. इस मामले में जांच शुरू हो गई है. तय है कि जांच रिपोर्ट बवाल खड़ा करेगी.
पेरोल को अब अनिवार्य करने पर विचार किया जाना चाहिए. ऐसे कैदियों, जो खतरनाक या आदतन अपराधी नहीं हैं, को साल में 10-12 दिन की पेरोल देने में हर्ज नहीं. पेरोल के कायदेकानून बदलने से फायदा होगा कि कैदियों  को सुधरने में सहायता मिलेगी और वे मुख्यधारा से भी जुड़े रहेंगे. यानी अवसाद, अपराधबोध और ग्लानि से दूर रहेंगे, जो कैदी मनोविज्ञान के लिहाज से एक बड़ी समस्या है.
 

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