मेरी पड़ोसिन अपने पहले प्रसव के लिए अस्पताल में भरती थी. उस ने पुत्र को जन्म दिया. उस के बाद हम उस से मिलने और बधाई देने अस्पताल गए. बेटा पा कर दोनों पतिपत्नी बहुत खुश थे. उन के बेटे को प्यार करते हुए कहा कि बेटा, तुम एक दिन पहले पैदा होते तो अंकल के साथ तुम्हारा जन्मदिन भी मनाते. क्योंकि एक दिन पहले ही मेरे पति का जन्मदिन था.
इस पर मेरी पड़ोसिन ने कहा, ‘‘अरे नहीं, भाभीजी, कल डिलीवरी होती तो लड़की होती. कल अमावस्या थी और कल अस्पताल में सब लड़कियां ही पैदा हुईं.’’
पड़ोसिन की बात सुन कर मैं दंग रह गई. मुझे विश्वास नहीं हुआ कि एमए पास महिला इस तरह की दकियानूसी सोच रख सकती है.
विमला सिंह, नागपुर (महा.)
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मेरे पति कानपुर में जौब कर रहे थे और मैं हमारे 3 छोटे बच्चों के संग लखनऊ में रहती थी. रोजाना आनेजाने में कभी ये जल्दी आते तो कभी आने में काफी देर हो जाती थी.
एक दिन शाम को एक सज्जन आए और बोले, ‘‘मुझे श्रीवास्तवजी ने बुलाया था. मैं रायबरेली से आ रहा हूं.’’
कानपुर से पहले मेरे पति की पोस्ंिटग रायबरेली में थी. मैं असमंजस में पड़ गई. उस समय मोबाइल इतना प्रचलित नहीं था. मैं मन ही मन घबरा गई. किसी अनजान व्यक्ति को घर में बुलाऊं तो कैसे? फिर सोचने लगी कि बाहर से आए इंसान को लौटाना इंसानियत का तकाजा नहीं. जो होगा देखा जाएगा. मैं ने उन सज्जन को बाहर के कमरे में बैठा दिया.
चाय पीने के बाद वे सज्जन आराम से कागज फैला कर काम करने लगे. धीरेधीरे घड़ी की सूई ने जब 9 बजाए और मेरे पति नहीं आए तब मेरे सब्र का बांध टूट गया. मैं बोली, ‘‘भाईसाहब, यह सच होगा कि मेरे पति ने आप को बुलाया होगा परंतु उन्होंने मुझ से इस बारे में कुछ भी नहीं कहा और मैं आप को पहले से जानती भी नहीं हूं इसलिए मैं आप को अब यहां ठहराने की स्थिति में नहीं हूं.’’
कुछ देर वे सज्जन सोचते रहे फिर उन्होंने अपना समान समेटा और घर से बाहर निकल गए. कभीकभी ऐसा भी होता है कि हम समझ नहीं पाते हैं कि हम ने सही किया कि गलत.
एक पार्टी में वे सज्जन दोबारा मिले. मेरे पास आ कर वे बोले, ‘‘भाभीजी, आप ने उस दौरान जो किया था वह समय के बिलकुल अनुकूल और सही था. मुझे परेशानी तो हुई पर मैं ने बुरा नहीं माना.’’
किसी अजनबी को हद के आगे पनाह देना उचित नहीं है इसलिए उस दिन मेरा फैसला उचित था.
रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)