मैं प्राचार्य पद की लिखित परीक्षा में सफलता हासिल कर साक्षात्कार की तिथि की उद्घोषणा का इंतजार कर ही रहा था कि मुझे अचानक किसी अत्यावश्यक कार्य हेतु पैतृक गांव जाना पड़ा. वहां से आने के बाद मुझे पता चला कि एक दिन बाद ही मेरा साक्षात्कार दिल्ली में है. मुझे किसी भी हाल में दिल्ली पहुंचना था. मैं ने आननफानन फ्लाइट टिकट बुक कराने से ले कर जितनी भी औपचारिकताएं साक्षात्कार में शामिल होने के लिए दी गई थीं, चंद घंटों में पूरी कर लीं. मेरी फ्लाइट का समय दोपहर 3 बजे था. मैं करीब 2 घंटे पहले ही एअरपोर्ट के लिए निकल गया. मैं बहुत खुश था कि चलो, इस बार अपना अभीष्ट पद मुझे मिल जाएगा.

पर यह क्या, कुछ लोगों ने अचानक मेरी गाड़ी को रोकने का निर्देश दिया. मैं समझ गया कि आगे कोई दुर्घटना घटी है और मुआवजे के लिए घंटों जाम लग सकता है. कुछ समय के लिए तो मैं किंकर्त्तव्यविमूढ़ बैठा रहा पर अचानक मैं ने कुछ सोचा और अपने खास मित्र डाक्टर अमित को फोन कर अपनी समस्या बयां की.

दोस्त ने तुरंत गाड़ी वापस घर भेजने को कहा और मुझे पैदल तेज रफ्तार से अपने क्लिनिक आने को कहा. मैं ने वही किया. इस के बाद मुझे मेरे मित्र ने जब कहा कि यार उठो, फ्लाइट तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है. इतना सुनना था कि मैं ऐंबुलैंस से कूद पड़ा और जा कर फ्लाइट में सवार हो गया. आज मैं प्राचार्य पद पर स्थापित हूं, लेकिन उस दिन को भूलता नहीं.

संजीव सिन्हा, रांची (झारखंड)

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