सस्ते किराए वाली एयरलाइंसों के आने से सरकारी ‘उड़ान’ स्कीम जैसी योजनाओं के चलते हवाई चप्पल वालों को भी हवाई सफर का सपना काफी समय से दिखाया जा रहा है. पर क्या यह अब मुमिकन है? एक तरफ बदहाल ‘महाराजा’ यानी एयर इंडिया सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद बिक नहीं रहा है, उधर ठसाठस भरे विमानों के बावजूद अच्छी मानी जाने वाली निजी एयरलाइंसों के बढ़ते घाटे के कारण, पसीने छूटने लगे हैं.
जानीमानी एयरलाइंस जेट एयरवेज के कर्ताधर्ता नरेश गोयल ने तो साफतौर से अपने शेयरधारकों से तब माफी मांग ली, जब उन की कंपनी के शेयर
60 फीसदी से नीचे चले गए. खबर यह भी आई थी कि जेट एयरवेज के पास एयरलाइंस चलाने के लिए 60 दिनों से ज्यादा का पैसा नहीं बचा है और इस के लिए कर्मचारियों के वेतन में कटौती हो सकती है. हालांकि आधिकारिक रूप से इन खबरों का खंडन किया गया लेकिन कंपनी के मालिक द्वारा शेयरधारकों से माफी मांगने के बाद साफ हो गया कि वहां सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.
कुछ ऐसा ही हाल इंडिगो और स्पाइस जेट जैसी एयरलाइंसों का भी दिखा, जब इन के शेयर गर्त में जाने लगे. सिर्फ प्राइवेट ही नहीं, सरकारी एयरलाइंस एयर इंडिया में भी ऐसे ही सवाल उठे. वहां पायलटों के संगठन इंडियन कौमर्शियल पायलट्स एसोसिएशन यानी आईपीसीए ने एयरलाइंस के प्रबंधन से पूछा कि क्या उन के पास एयरलाइंस के संचालन और मेंटिनैंस के लिए पर्याप्त धन है.
यह सवाल खासतौर से तब उठता है कि जब इन निजी एयरलाइंसों के विमानों में यात्रियों की संख्या में कोई कमी न दिखे और नजदीकी भविष्य में उन के पैसेंजरों में कमी आने की कोई आशंका न हो.
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