देश की जनता को सब से ज्यादा लूटने का काम बिल्डरों, प्रौपर्टी डीलरों और दूसरे भूमाफियाओं ने किया है. प्रौपर्टी की दलाली खाने वाले असंख्य लोग महलों के मालिक बन गए हैं. इस की वजह देश का तेजी से होता शहरीकरण और शहरों में अपना घर होने की हर व्यक्ति की चाहत है. इस होड़ से बाजार में मांग बढ़ी और बिचौलियों ने इस का जम कर फायदा उठाया.

चारों तरफ से जब बिल्डरों और प्रौपर्टी डीलरों को ले कर शिकायतें आती रहीं तो सरकार ने 2016 में रियल एस्टेट (नियामन और विकास) अधिनियम 2016 यानी रेरा बनाया. इस कानून के बनने से रियल एस्टेट में पारदर्शिता की सुगबुगाहट शुरू हुई. लेकिन डैवलपरों की मजबूत पकड़ सरकारों पर भी रही है, इसलिए 2017 में जिन 20 राज्यों ने इस कानून को अधिसूचित किया उन में से सिर्फ 14 ही इसे क्रियान्वित कर पाए. इस कानून को जिन राज्यों ने लागू किया वहां से फर्जी डैवलपर बाजार से भागने लगे.

एक सर्वेक्षण के अनुसार, देश के 10 प्रमुख शहरों में 45,000 डैवलपरों में से 20 हजार अब तक अपनी दुकानें बंद कर चुके हैं. इस का मतलब बाजार में वही टिका रहेगा जो कानून के दायरे में काम करने को तैयार है.

इस कानून के अस्तित्व में आने तक काफी लोग अपनेआप को डैवलपर कह रहे थे और हर साल लाखों भवन बन कर तैयार हो रहे थे लेकिन अब भवन निर्माण और डैवलपर्स दोनों की संख्या घट कर लगभग आधी रह गई है.

इस दौरान जहां महज 2 लाख भवन हर साल बन रहे हैं वहीं रीसेल मार्केट 4 लाख इकाई की बिक्री तक पहुंच गया है यानी कि लोग भवन निर्माताओं के बजाय सामान्य लोगों से भवन खरीदना पसंद कर रहे हैं.

प्रौपर्टी बाजार की लूट इस कानून से थमी है और बाजार में घर व जमीन के दाम जिस गति से बढ़ रहे थे उस पर लगाम लगी है.

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