भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार के बीच चल रहे लंबे विवाद ने आम लोगों को हैरत में डाल दिया है. आम तौर पर मुद्दों पर सरकार और रिजर्व बैंक के बीच मतभेद हुए हैं और होते भी रहते हैं. पर इस मामले में पूरा विवाद सार्वजनिक हो जाना पहली बार हुआ और दोनों संस्थाओं की खींचातानी ने आम जनता के बीच अविश्वास भी पैदा किया है. विवाद इस कदर बढ़ गया कि खबरें आईं कि आरबीआई गवर्नर उर्जीत पटेल इस्तीफा दे सकते हैं. हालांकि इस पर आरबीआई ने किसी भी तरह की टिप्पड़ी नहीं की. आरबीआई सूत्रों की माने तो ऐसे विवाद आम हैं पर सरकार की ओर से आरबीआई धारा सात के इस्तेमाल के बाद मामला और गंभीर हो गया.

इन विवाद और आरोप- प्रत्यारोप के बीच हम आपको बताएंगे कि सरकार भारतीय स्टेट बैंक पर क्यों नियंत्रण रखना चाहती है.

  • कदी की मांग

सरकार रिजर्व बैंक के कोष से राजकोषिय घाटे को कम करने के लिए मदद के रूप में बार बार पैसे मांगे. आरबीआई अपने विभिन्न गतिविधियों से अर्जित अपने मुनाफे का हिस्सा देता है. लेकिन सरकार चाहती है कि आरबीआई के 3.6 खरब रुपये के भंडार में भी हिस्सा मिले. पर रिजर्व बैंक ने सरकार की इस मांग को लगातार खारिज कर रही है.

  • लिक्विडिटी का मुद्दा

सरकार चाहती है कि आरबीआई बैंकिंग क्षेत्र को, जो इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज के डिफाल्ट का शिकार हो गई है, को और अधिक लिक्विडिटी दे.

  • 11 बैंकों पर ऋण संबंधी प्रतिबंध

11 सरकारी बैंकों पर अपने उधार प्रतिबंधों को खत्म करने लिए सरकार रिजर्व बैंक से आग्रह कर रही है. इन बैंकों पर रिजर्व बैंक ने कम पूंजी आधार और बैड लोन्स की दिक्कत के चलते प्रतिबंध लगाए गए थे. 11 बैंकों को तब तक के लिए उधार देने से रोक दिया गया जब तक उनके बैड लोन कम नहीं हो जाता. सरकार का कहना है कि इन प्रतिबंधों के कारण  मध्यम और छोटे वर्ग के व्यवसायों को लोन मिलना मुश्किल हो गया है, इस लिए जरूरी है कि 11 सरकारी बैंकों पर लगे प्रतिबंध को हटाया जाए.

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