केंद्रीय रिजर्व बैंक ने ब्याज मुक्त बैंकिंग शुरू करने के लिए सरकार से साथ मिलकर काम करने का प्रस्ताव दिया है. आरबीआई के रुख में इस बदलाव के पीछे की वजह धार्मिक कारणों से वित्तीय सेवाओं से अलग-थलग पड़े समूहों को भी बैंकिंग की मुख्यधारा में शामिल करना है. इस प्रक्रिया के बाद खासकर मुस्लिमों के लिए इस्लामिक फाइनैंस के रास्ते खुल जाएंगे.

आरबीआई ने पिछले सप्ताह जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इसके लिए प्रस्ताव दिया है. इसे आरबीआई के रुख में एक बड़े बदलाव की तरह लिया जा रहा है. पहले आरबीआई ने इस्लामिक फाइनैंस को लेकर अलग रुख अपनाया था. आरबीआई ने कहा था कि इस्लामिक फाइनैंस को नॉन-बैंक चैनल्स जैसे इन्वेस्टमेंट फंड्स या को-ऑपरेटिव्स के जरिये प्रभावी किया जा सकता है.

आरबीआई के पूर्ववर्ती रुख से एक बात तो तय थी कि भारत का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह यानी मुस्लिम इस्लामिक बैंकिंग का फायदा नहीं उठा पाएंगे. धार्मिक वजहों से इस्लाम में ब्याज आधारित बैंकिंग की मनाही है. अब आरबीआई ने कहा है कि वह सरकार के साथ मिलकर इंट्रेस्ट फ्री बैंकिंग शुरू करने की संभावनाओं पर काम करेगा.

इस्लामिक फाइनैंस के एक्सपर्ट और बेंगलुरु की इनफिनिटी कंसल्टेंट के मैनेजिंग पार्टनर सैफ अहमद ने इसे काफी महत्वपूर्ण कदम माना है. सैफ अहमद का कहना है कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण बदलाव है. पहली बार आरबीआई ने कहा है कि वह इस्लामिक बैंकिंग की दिशा में सरकार के साथ मिलकर काम करेगी.

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