अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे क्या भारत समेत दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं? नवंबर में होने वाले इस चुनाव से पहले यही सवाल निवेशकों के दिमाग में उठ रहा है. बाजार की प्रतिक्रिया को देखते हुए बात करें तो बहुत कम लोग होंगे जो रिजल्ट के बाद के हालात पर अभी दांव लगाना चाहेंगे, लेकिन वे बाजार पर बुलिश बने रहना चाहेंगे.

1996 से अब तक अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के बाद ज्यादातर मौकों पर एशियाई बाजारों में तेज उछाल आया है. बीएसई सेंसेक्स पिछले पांच में चार मौकों पर चुनाव के बाद के तीन महीने तक चढ़ा था, भले ही किसी भी पार्टी की सरकार बनी हो. सिर्फ एक बार 2008 में भारत सहित दूसरे एशियाई बाजारों में गिरावट का दौर आया था.

इस बार निवेशकों में बहुत ज्यादा घबराहट है क्योंकि रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप ने हाल के महीनों में वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार की कड़ी आलोचना की है. अमेरिका इंटरनैशनल इन्वेस्टमेंट्स के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट जॉन प्रवीण ने कहा, 'ट्रंप की जीत पर ब्रेग्जिट जैसी नकारात्मक स्वत:स्फूर्त प्रतिक्रिया हो सकती है, लेकिन इस पर ब्रेग्जिट की तरह नेगेटिव रिएक्शन होता भी है तो उसका असर बहुत कम समय के लिए होगा.'

अमेरिका में 1996 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद से एशियाई इमर्जिंग मार्केट्स का परफॉर्मेंस बाद के महीनों में उथलपुथल वाला रहा है. इंडियन मार्केट पांच में से तीन मौकों पर गिरा. स्ट्रैटिजिस्ट और फंड मैनेजर्स के मुताबिक, भारत से ज्यादा दिक्कत चीन को हो सकती है. हालांकि, इन्वेस्टर्स को यह उम्मीद जरूर होगी कि चीन के मार्केट पर उसका व्यापक असर न हो. अगर चीन अपनी करेंसी युआन को तेजी से डिवैल्यू होने देता है तो उसका असर इंडियन करेंसी रुपया सहित दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स की करेंसी पर पड़ेगा. रुपये के कमजोर होने से फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स की भारत से निकलने की शुरुआत होने का खतरा पैदा होगा. इसी साल चाइनीज करेंसी युआन में डिवैल्यूएशन होने के चलते इमर्जिंग मार्केट्स में गिरावट आई थी.

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